कौन आया काम जनता के लिए
कह गये सब राम जनता के लिए।१।
*
सुख सभी रखते हैं नेता पास में
हैं वहीं दुख आम जनता के लिए।२।
*
देख पाती है नहीं मुख सोच कर
बस बदलते नाम जनता के लिए।३।
*
छाँव नेताओं के हिस्से हो गयी
और तपता घाम जनता के लिए।४।
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अच्छे वादे और बोतल वोट को
हो गये तय दाम जनता के लिए।५।
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न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
भोर नेता साम जनता के लिए।६।
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
सादर प्रणाम आदरणीय धामी सर ग़ज़ल बेहद भावपूर्ण है
और निखर जायेगी अगर मतले का सानी स्पष्ट हो गया तो
यही स्पष्टता तीसरे शैर का ऊला और छठे का सानी मिसरा मांग रहा है
सादर
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।
"कौन आया काम जनता के लिए" इस मिसरे में 'काम' आने से आपका आश्य क्या है? यदि जनता के लिए जनसेवक (नेता) द्वारा जन सुविधाएं प्रदान किया जाना है तो यह वाक्य विन्यास 'लिए' के कारण सही नहीं है, और यदि आपका आश्य जनता के लिए नेता द्वारा अपनी जान क़ुर्बान कर देना है तो दुरुस्त है,साथ ही ऊला मिसरे से सानी का रब्त समझ नहीं आया, बताने की ज़हमत फ़रमाएं।
"देख पाती है नहीं मुख सोच कर
बस बदलते नाम जनता के लिए।" इस शे'र के ऊला का भाव और सानी से रब्त स्पष्ट नहीं है।
"न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
भोर नेता साम जनता के लिए।६। इस शे'र में आप किसे दोष दे रहे हैं ? ग़ौर कीजियेगा। और साम को शाम कर लीजिए। सादर।
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