For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कौन आया काम जनता के लिए- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२/२१२२/२१२


कौन आया काम जनता के लिए
कह गये सब राम जनता के लिए।१।
*
सुख सभी रखते हैं नेता पास में
हैं वहीं दुख आम जनता के लिए।२।
*
देख पाती है नहीं मुख सोच कर
बस बदलते नाम जनता के लिए।३।
*
छाँव नेताओं  के हिस्से हो गयी
और तपता घाम जनता के लिए।४।
*
अच्छे वादे और बोतल वोट को
हो गये तय दाम जनता के लिए।५।
*
न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
भोर नेता  साम  जनता  के लिए।६।

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 438

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aazi Tamaam on April 14, 2021 at 2:37pm

सादर प्रणाम आदरणीय धामी सर ग़ज़ल बेहद भावपूर्ण है

और निखर जायेगी अगर मतले का सानी स्पष्ट हो गया तो

यही स्पष्टता तीसरे शैर का ऊला और छठे का सानी मिसरा मांग रहा है

सादर

Comment by Sushil Sarna on April 11, 2021 at 5:41pm
वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।हार्दिक बधाई सर
Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 11, 2021 at 10:48am

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। 

"कौन आया काम जनता के लिए"  इस मिसरे में 'काम' आने से आपका आश्य क्या है? यदि जनता के लिए जनसेवक (नेता) द्वारा जन सुविधाएं प्रदान किया जाना है तो यह वाक्य विन्यास 'लिए' के कारण सही नहीं है, और यदि आपका आश्य जनता के लिए नेता द्वारा अपनी जान क़ुर्बान कर देना है तो दुरुस्त है,साथ ही ऊला मिसरे से सानी का रब्त समझ नहीं आया, बताने की ज़हमत फ़रमाएं।

"देख पाती है नहीं मुख सोच कर

बस बदलते नाम जनता के लिए।" इस शे'र के ऊला का भाव और सानी से रब्त स्पष्ट नहीं है।

"न्याय के पलड़े में समता है कहाँ

भोर नेता साम जनता के लिए।६।  इस शे'र में आप किसे दोष दे रहे हैं ? ग़ौर कीजियेगा। और साम को शाम कर लीजिए।  सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-129 (विषय मुक्त)
"स्वागतम"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"बहुत आभार आदरणीय ऋचा जी। "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार भाई लक्ष्मण जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है।  आग मन में बहुत लिए हों सभी दीप इससे  कोई जला…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"हो गयी है  सुलह सभी से मगरद्वेष मन का अभी मिटा तो नहीं।।अच्छे शेर और अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आ.…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रात मुझ पर नशा सा तारी था .....कहने से गेयता और शेरियत बढ़ जाएगी.शेष आपके और अजय जी के संवाद से…"
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. ऋचा जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. तिलक राज सर "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. जयहिंद जी.हमारे यहाँ पुनर्जन्म का कांसेप्ट भी है अत: मौत मंजिल हो नहीं सकती..बूंद और…"
Monday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"इक नशा रात मुझपे तारी था  राज़ ए दिल भी कहीं खुला तो नहीं 2 बारहा मुड़ के हमने ये…"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी ख़ूब शेर कहे आपने बधाई स्वीकार कीजिए सादर"
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  सादर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service