२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया
बोली जवानी क्रोध में दुश्मन क्या लिख दिया।१।
*
घर के बड़े भी काट के पेड़ों को खुश हुए
बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।
*
तस्कर तमाम आ गये गुपचुप से मोल को
माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।
*
आँखों से उस की धार ये रुकती नहीं है अब
भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।
*
वो सब विहीन रीड़ के श्वानों से बन गये
कुत्तों के हिस्से सेठ ने माखन क्या लिख दिया।५।
*
हँसती हो मौत देख के खुशियों में छेद ये
निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया।६।
(४-४-२१)
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपकी मनोहारी टिप्पणी से मन हर्षित हुआ । उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आदरणीय धामी जी सादर नमस्कार
अद्भुत गजल हुई है आदरणीय
आनंद आ गया
आ. भाई ब्रिजेश जी, हार्दिक धन्यवाद।
बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, धन्यवाद।
आ. भाई आज़ी तमाम जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, सराहना व सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद।
//हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी//
आपके भावों के अनुसार ये मिसरा फ़िट है।
बेहतरीन ग़ज़ल है आदरणीय धामी सर
सादर प्रणाम
गुस्ताखी माफ़ हो मैंने एक लाइन लिक्खी है इससे शायद कुछ और बेहतरीन बन सके देखियेगा
"दुश्मन हर इक गरीब के फ़िर हो गये धनी"
निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया
सादर
आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
इंगित शेर को इस प्रकार दे खिएगा-
हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी
जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।
'हँसती हो मौत देख के खुशियों में छेद ये
निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया' इस शे'र के ऊला का कथ्य समझ नहीं आया। सादर।
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