१२१२ ११२२ १२१२ ११२
हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी
गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी
बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर
जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी
कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें
कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी
नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे
ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी
मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार…
ContinueAdded by sanju shabdita on May 28, 2014 at 7:14pm — 58 Comments
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