कितना कठिन हो जाता है
लिखना
कई बार
'फैशन' के अनुरूप
कैसे साध रखा है हमने
अपने मन को
की वह सोचता है
बिलकुल किसी कंप्यूटर प्रोग्राम की तरह
किस तरह रख पाते हैं हम
अपने मन के भावों को
अनुशासन में
और
वे प्रकट होते हैं
केवल
एक दिवस-विशेष पर...
एक विशेष दिन ही जागता है जज़्बा देश-प्रेम का
या
मातृ-पितृ भक्ति का..
किसी एक दिन ही
आती है
भूली-बिसरी
बहन की याद..
ऐसे ही कई लोग हैं…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:30pm — 13 Comments
मेरी बात को सुन लड़की,
कुछ सपने मत बुन लड़की
सपनो को लगेगा घुन लड़की
मेरी बात को सुन लड़की...
मेरी बात मान लड़की
कुचल अपने अरमान लड़की
राक्षशों को पहचान लड़की
मेरी बात मान लड़की...
मत कर तू प्यार लड़की
ऐतराज़ करेगी 'तलवार' लड़की
बहुत तेज़ है धार लड़की
मत कर तू प्यार लड़की...
चीरती है सब जहां की ख़ामोशी
कौन समझ रहा माँ की ख़ामोशी
ठन्डे पड़े जिस्मोजां की ख़ामोशी
चीरती है सब जहां की ख़ामोशी
मेरी बात को सुन…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:09pm — 5 Comments
होठों से छुआ भी…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 13, 2012 at 9:07pm — 11 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 8:00pm — 10 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 7:44pm — 8 Comments
हे ईश्वर
यह सच है की,
मैंने चाहा 'ए.सी'
ये भी सच
मैंने माँगी
'प्राइवेसी'
हे अंतर्यामी
रही चाहत मेरी सदैव
रहूँ मैं लाईम-लाईट में
और
टिका रहे हर वक़्त मुझ पर ही कैमरा
आती रहे निरंतर कानो में
हरे-हरे नोटों के
फड़फड़ाने की आवाज़...
लेकिन
मेरी मुद्दत की तमन्नाओं का
ये क्या तर्जुमा.... मेरे परवरदिगार
आज खड़ा हूँ मैं बन कर
ATM का चौकीदार !!!
~…
Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 9:59pm — 6 Comments
© AjAy Kum@r
Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 11:56am — 6 Comments
मैं
भीड़ हूँ
इस लोकतंत्र के ढाँचे की मैं रीढ़ हूँ
जी हाँ
मैं भीड़ हूँ...
तिनका-तिनका जोड़ता दिन का
रोज़ बिखरता-जुड़ता
मन-आशाओं का नीड़ हूँ
मैं भीड़ हूँ...
कहाँ फुर्सत
वैष्णव-जन को,
की जाने मुझ को
एक परायी पीड़ हूँ
मैं भीड़ हूँ...
~ © AjAy Kum@r
Added by AjAy Kumar Bohat on May 11, 2012 at 11:30am — 10 Comments
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