पानी नहीं है , प्यास लगी है
मुन्ने को देखो प्यास लगी है
घर के सारे घड़े खाली पड़े है
बाहर के नल भी सूखे पड़े है
मुन्ने को मैं कैसे समझाऊं
प्यास उसकी मैं कैसे बुझाऊं
गर्मी भी तो बढ़ रही है
बस्तियां जैसे जैसे गढ़ रहीं है
वन उपवन हमने काट दिए है
और जाने कितने विनाश किये है
अब भुगत रहे मासूम यह बच्चे
कौन समझें यह तो अक्ल के कच्चे
अक्ल वाले सब कहाँ गए…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2016 at 11:00pm — 1 Comment
यह कौन है वहां उस छोर पर
जो देख रहा बादलों के कोर से
बैठ गया है जो वहां सालों से
न वो कोई ज़मीन पर रहता है
न ही आसमान को कोई हिस्सा है
दिखता है वो बहुत करीब मगर
जाने किस जहां में बस्ता है
दूर है वो पर करीब ही दिखता है
जब पूछते है पता उसका
कुछ मुस्कुराकर वो यह कहता है
बांवरा मन यह तेरा क्यों मुझको
इस बेचैनी से क्यों मुझको तू देखता है
क्षितिज हूँ मैं ,
आसमान का नहीं ,ज़मीन का भी नहीं
यह मेरा जहां है जहाँ तू मुझको…
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 9, 2016 at 3:30pm — 5 Comments
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