‘’ हमारे रिश्ते ‘’
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अगर रिश्ते सच में हैं , तो
मीलों की दूरियाँ
कमज़ोर नही करती रिश्तों की मज़बूती
मिलन की प्यास बढाती ज़रूर है
रिश्ते , मृग मरीचिका नहीं होते
कि , पास पहुँचें तो नज़र न आयें
भावनायें प्यासी रह जायें
रिश्ते
रेत मे लिखे इबारत भी नही होते
कि ,सफल हो जायें, जिसे मिटाने में
समय के समुद्र में उठती गिरती कमज़ोर लहरें भी
रिश्ते
शिला लेख की तरह…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 28, 2014 at 9:30pm — 33 Comments
2122 1212 22
ज़िन्दगी यूँ लगी भली, फिर भी
बात खुशियों की है चली, फिर भी
देखिये सच कहाँ पहुँचता है
यूँ है चरचा गली गली, फिर भी
क्या करूँ हक़ में कुछ नहीं मेरे
रूह तक तो मेरी जली, फिर भी
क्यों अँधेरा घिरा सा लगता है
साँझ अब तक नहीं ढली फिर भी
आप दहशत को और कुछ कह लें
डर गई हर कली कली फिर भी
अश्क रुक तो गये हैं आखों के
दिल में बाक़ी है बेकली फिर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 26, 2014 at 12:00pm — 20 Comments
2122 2122 2122 2
अब हवा है , कोयला दहके तो अच्छा है
देख ले ये बात भी कहके तो अच्छा है
खूब झेला पतझड़ों को, अब कोई कोना
इस चमन का भी ज़रा महके तो अच्छा है
सीलती सी, उस अँधेरी झोपड़ी में भी ,
देखते हैं आप जो रहके , तो अच्छा है
कहकहा केवल नहीं अनुवाद जीवन का
दर्द भी आकर कभी चहके , तो अच्छा है
ज़िन्दगी बेस्वाद लगती है लकीरों में
अब क़दम थोड़ा अगर, बहके तो अच्छा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 15, 2014 at 5:30pm — 40 Comments
ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं
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आज पूजा जा रहा हूँ ।
दूर दूर से आ कर
नत मस्तक हो हज़ारों हज़ारों भक्त
दुआयें मांगते हैं , चढ़ावे चढ़ाते हैं ,
अपनी अपनी मुरादों के लिये ।
उनकी अटूट ,गहरी आस्थाओं ने, विश्वासों ने
सच में ज़िन्दा कर दिया है
मेरे अंदर , ईश्वरत्व ,
वो ईश्वरत्व
जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है ।
पूरी हो रहीं है मुरादें भी,
पर ,
कैसे कहूँ मै शुक्रिया उन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 6:43pm — 19 Comments
2122 2122
दस्तो बाज़ू खोल लें क्या
फिर परों को तोल लें क्या
शब्दों में धोखे बहुत हैं
मौन में ही बोल लें क्या
दोस्त के क़ाबिल नहीं वो
दुश्मनी ही, मोल लें क्या
और कितना हम लुटेंगे
हाथ में कश्कोल लें क्या ------ कश्कोल - भिक्षापात्र
दिल हमारा ,साफ है तो
रंग, कुछ भी घोल लें क्या
नीम है , हर बात उनकी
हम ही मीठा ,बोल लें…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2014 at 4:30pm — 47 Comments
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