अक्सर मैंने देखा उसको खुद से हीं बातें करते
कभी-कभी बिना कारण हीं खुद में हंसते खुद में रोते
कई दफा तो काटी उसने रातें यूं ही जाग जाग के
कभी किसी पर अटक गई जो पलकें उसकी बिना झपके
बैठे-बैठे खो जाती है वो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 31, 2022 at 9:30am — 2 Comments
क्या रंग है आँसू का कैसे कोई बतलाएगा?
सुख का है या दु:ख का है ये कोई कैसे समझाएगा?
कभी किसी के खो जाने से, कोई कभी मिल जाए तो
कभी कोई जो दूर हो गया, कोई पास कभी आ जाए तो
किस भाव में कितना बहता, कोई ध्यान नहीं रखता
हर हाल में इसका एक ही रंग है, फर्क ना कोई कर सकता
कभी दर्द में बह जाता है, हंसी में भी ये दूर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 25, 2022 at 11:47am — 2 Comments
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
चाहे उलाहना पाओ जितनी, तुम अपने जिद पर अड़ी रहो
गर्भ में ही मारेंगे तुमको, वो सांस नहीं लेने देंगे
कली मसल कर रख देंगे वो फूल नही बनने देंगे
तुम मगर गर्भ से निकल कर अपनी खुशबू बिखरा दो
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
चाहे पथ पर पत्थर फेंके, शिक्षा से रोके तुमको
कुछ पुराने मनोवृत्ति वाले चूल्हे में झोंके तुमको
तुम ना डिगना अपने प्रण से, एकाग्रचित्त हो जमी…
Added by AMAN SINHA on May 21, 2022 at 11:59am — No Comments
मैं धरती बोल रही हूँ,
हाँ-हाँ धरती बोल रही हूँ
अपनी व्यथा सुनाने को मैं
मैं कब से डोल रही हूँ
मैं धरती बोल रही हूँ
मैंने ही तुमको जन्म दिया…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 16, 2022 at 11:30am — 2 Comments
दर्द है ये दो दिलों का, एक का होता नहीं
जागते है संग दोनों, कोई भी सोता नहीं
ये ख़ुशी है या के ग़म है, कोई कह सकता नहीं
दर्द का वैसे भी यारो, रंग होता हीं नहीं
याद आती है घडी वो, जब पहली बार हम मिले थे
बसंत के वो दिन नहीं थे, पर फूल दिल में खिले थे
क्या हुआ जो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 13, 2022 at 1:00pm — No Comments
ख़यालों में मेरे ख़याल एक आता है
भरम मेरा मुझको यूं भरमा के जाता है
दिखता नहीं है पर कोई बातें करता है
नहीं साथ मेरे पर महसूस होता है
मैं अंजान उससे पर वो जानता है
वो है बस यहीं पर ये दिल मानता है
दिखा जो कहीं पर तो पहचान लूंगी
यही मर्ज़ मेरा है मैं जान लूंगी
वो है झोंका हवा का है अंदाज़…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 12, 2022 at 1:31pm — No Comments
तोड़े थे यकीन मैंने मुहल्ले की हर गली में
चैन हम कैसे पाते इतनी आहें लेकर
मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है
ठोकरे हीं हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर
हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया
ज़मी थी सख्त मैं मगर बस धंसता हीं गया
गुनाह जो मैंने किये थे बे-खयाली में
याद करके उन सबको मैं बस गिनता…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 6, 2022 at 12:54pm — 1 Comment
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