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ग़ज़ल
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आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला…
Added by Saurabh Pandey on May 2, 2016 at 5:30pm — 44 Comments
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