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आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी, आपको प्रस्तुति अच्छी लगी इस हेतु धन्यवाद.
अनपढ़ा शब्द न होता कैसे प्रयुक्त होता ? किंतु, कृपया आप यह भी देखें कि इसका किस तरह से व्यवहार हुआ है.
अनपढ़ और अनपढ़ा के महीन फर्क का आपकी सुधी दृष्टि भान कर सकेगी, इसकी हमें भी अवश्य अपेक्षा है.
अन्यथा हम सहज ही उक्त मिसरे को कुछ यों लिख सकते थे - या मैं अनपढ़ भला, जा तुझे इश्क हो ...
शुभातिशुभ
आदरणीया अनिता जी, आपका हार्दिक धन्यवाद.
वाह , क्या खूब ग़ज़ल हुई
आ. आपने सही कहा, परन्तु टंकण त्रुटि हुई !
बहर-ए-मुत्दारिक मुसम्मन सालिम. आदरणीय चेतन प्रकाशजी, यह है बहर का दुरुस्त नाम.
आपसे मिली प्रशंसा हेतु हार्दिक धन्यवाद.
आ. सौरभ साहब, बह्रे मुताबिक मुसम्मन सालिम में खुबसूरत ग़ज़ल कही आपने । हाँ, शे'र न0.7 दो मुँहा जान पड़ा ! सादर
आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी गुणग्राहकता के प्रति आभार.
जय-जय
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