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ग़ज़ल
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आओ चेहरा चढ़ा लिया जाये
और मासूम-सा दिखा जाये
केतली फिर चढ़ा के चूल्हे पर
चाय नुकसान है, कहा जाये
उसकी हर बात में अदा है तो
क्या ज़रूरी है, तमतमा जाये ?
फूल भी बदतमीज़ होने लगे
सोचती पोर ये, लजा जाये
रात होंठों से नज़्म लिखती हो,
कौन पर्बत न सिपसिपा जाये ?
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये ..
काव्य-संग्रह छपा लिया उसने
अब तो उसका कहा सुना जाये
कौन इन्सान क्या पता ’सौरभ’
किस कहानी में नाम पा जाये
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आ. Saurabh Pandey सर,
एक बार फिर हड़प्पा की खुदाई से आपका एक रत्न बरामद किया है.
एक बार फिर ढेरों दाद स्वीकार करें ..
//रात होंठों से नज़्म लिखती रही // यह मिसरा उधार ले रहा हूँ...
पहले इस ज़मीन में ग़ज़ल कह चुका हूँ लेकिन अब ऊला मिसरे को ग़ज़ल बना के आप को समर्पित करने का प्रयास रहेगा .
नमन
आज विलम्ब के साथ अपनी ही रचना पर आरहा हूँ.
भाई शिज्जू शकूर जी, आत्मीय नादिर भाई, आदरणीय गोपाल नारायण जी, भाई रामबली गुप्ताजी, आदरणीय राजेश कुमारी जी, आप सबों की हौसलाअफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया.
यह ग़ज़ल बताती है कि कैसे यह मंच तिल-तिलकर ग़ज़लग़ोई में सहयोग करता है.
शुभ-शुभ
आज मई माह की रचनाओं को खंगालते हुए आपकी इस ग़ज़ल पर नजरें टिकी रह गई। पूरे मई बाहर थी नेट पर अनुपस्थित रही। जिस वजह से ये ग़ज़ल हम से शायद रूठी रही ..खैर अब मना लिया है एक एक शब्द को छू छू कर पढ़े। मतले से मकते तक बिलकुल नए अंदाज के अशआरों से सामना होता गया | बस क्या कहूँ तारीफ के लिए भी शब्द नहीं मिल रहे दिल से ढेरों दाद कबूल कीजिये आ० शायर सौरभ जी
रात होंठों से नज़्म लिखती रही
चाँद औंधा पड़ा घुला जाये ..
आदरणीय सौरभ सर ग़ज़ल तो पहले से ही शानदार थी इस शेर ने चार चाँद लगा दिए। .. बहुत मुलायम शेर है सर बहुत सीखना बचा है। .
//आपकी सदाशयता के हम सदा से काइल रहे हैं. प्रस्तुति पर आपकी अहम मज़ूदग़ी के लिए हार्दिक धन्यवाद//
ज़र्रानवाज़ी का बहुत शुक्रिया जनाब वगर्ना हम तो अपनी कम इल्मी पर खुद शर्मसार रहते हैं शायद यही घुटन सीखने की ललक बनाये हुए है कल जब नीलेश नूर साहब से सुना के उन्होंने ३०० ग़ज़ल फेंकी है, हमारे तो हाथ पाँव फूलने लगे दिल में ख्याल आया ये कहाँ आ गए हम शौक़ शौक़ में, मगर फिर ये भी ख़याल आया वीनस जी ने कहीं लिखा था जो वज़्न की गिनती करना सीख गया देर सवेर ग़ज़ल कहना भी सीख जायेगा बस इसी उम्मीद पे चल रहे हैं फिर सुधीजनों का साथ और ईश्वर (अल्लाह ) की मर्जी साथ है तो घबराना कैसा आदरणीय मैं आपसे खुलकर बातें कर पाता हूँ आपने कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है मुझे....
शुभ शुभ
वाह वाह वा....मतले से आगे बढूँ तो बाकी पढूँ ...
बहुत खूब ..अब तो तरही ग़ज़ल कहना ही पड़ेगी इस ज़मीन पर ..
बहुत बहुत बधाई
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