(शारदी छंद)
चले चलो पथिक।
बिना थके रथिक।।
थमे नहीं चरण।
भले हुवे मरण।।
सुहावना सफर।
लुभावनी डगर।।
बढ़ा मिलाप चल।
सदैव हो अटल।।
रहो सदा सजग।
उठा विचार पग।।
तुझे लगे न डर।
रहो न मौन धर।।
प्रसस्त है गगन।
उड़ो महान बन।।
समृद्ध हो वतन।
रखो यही लगन।।
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*शारदी छंद* विधान:-
"जभाल" वर्ण धर।
सु'शारदी' मुखर।।
"जभाल" = जगण भगण लघु
।2। 2।। । =7…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 18, 2021 at 4:01pm — 3 Comments
(पावन छंद)
सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।
वारिद बरसत है, उफने सरित है।।
चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।
मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।
घोर सकल तन में, घबराहट रचा।
है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।
देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।
तारक अब लगते, मुझको दहकते।।
बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।
अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।
बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।
आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।
क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 13, 2021 at 9:00am — 1 Comment
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