कारगिल के बाद
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।
हर बार घात को मात भी दी। टेढ़ी चालें कर दी सीधी।
पर हारें कूटनीतिक बाजी। करते युद्धविराम राजी राजी।।
आगे बढ़ते विजयी-कदम, वापिस कभी न हो पाएं।
वीरों ने दिया प्राणों का, बलिदान व्यर्थ न हो जाए।।
लालों के खून की जो लाली। करती सीमाओं की…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on May 3, 2013 at 6:00am — 5 Comments
पंच सब टंच
जिंदगी की जंग से अंग सब तंग लेकिन
पाश्चात्य के रंग सब हुए मतवाले हैं।
निर्धन अधनंग पिसे, महंगाई के पाट बीच
चूर चूर स्वप्न मिले आंसुई परनाले हैं।।…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on May 2, 2013 at 6:00am — 6 Comments
(रचना 1996 में एक संस्थान के निदेशक को समर्पित थी, पर आज के राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी सटीक लगती है)
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
शिकायत जायज़ है, प्रजा साथ नहीं
कल तक थे जहां, हैं वहीं के…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on May 1, 2013 at 6:00am — 8 Comments
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