(रचना 1996 में एक संस्थान के निदेशक को समर्पित थी, पर आज के राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी सटीक लगती है)
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
शिकायत जायज़ है, प्रजा साथ नहीं
कल तक थे जहां, हैं वहीं के वहीं
दिखता नहीं काम का आलम अब कहीं
जरा कुछ करके, मिसाल कायम करें.
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
नुमाइश बेबसी की हर कोई कर गया
हर बार मिल गया, वादा हमें नया
पालक बनकर जरा अपनी करें दया
खेती आश्वासनों की, कृपया और ना करें
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
नींव के पत्थर गए, इमारत खो रही
संचित की जिल्द में, बातें वही की वही
तामीर कुछ करो कि मिले मंजिलें नई
ठोस योगदान की, अब तो नींव धरें!
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
अपनों में करते हैं, खोज बेगानों की
राह तो बनी है फकत, अफसानों की
बारात सजाते रहे, खुद के अरमानों की
कुछ तो करम कभी, औरों पर भी करें
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
सपने बहुत देख लिए, अब तो जाग जाएं
हर वक्त एक ही राग बार बार क्यों गाएं
एक के बाद एक साथी- भाग न जाएं
उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
Comment
खेती आश्वासनों की, कृपया और ना करें
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें.........बहुत खूब!
आदरणीय सुरेन्द्र वर्मा साहब सादर बहुत सुन्दर रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय सुरेन्द्र जी बहुत सुन्दर रचना! आपको ढेरों बधाई। आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी।
सादर!
आदरणीय केवल प्रसादजी, लक्ष्मण प्रसादजी, अखिलेशजी, प्रदीप कुशवाहजी, कुन्तीजी,
औरआगे भी प्रेरणास्पद प्रोत्साहित करती टिप्पणी देने वाले अन्य सभी का आभार. बहुत संकोच के साथ इन रचनाओं को दिन की रोशनी में ला रहा हूँ .... अपनी शैली के लिए परिचितों में वैसे भी आलोचना का पात्र रहा हूँ की किसी को भी कुछ भी कह देता हूँ...परन्तु प्रयत्न रहता है की शालीनता बनी रहे और क्षोभ, जिसे आम लोग "भड़ास" कहते हैं. व्यक्त हो जाए. आप सब के आशीर्वाद रहे तो आगे भी कुछ प्रस्तुति देने का साहस कर पाउँगा
सपने बहुत देख लिए, अब तो जाग जाएं
हर वक्त एक ही राग बार बार क्यों गाएं
एक के बाद एक साथी- भाग न जाएं
उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें.........बहुत सुंदर , यह बात आज भी बड़ी खूबसूरती
से निभायी जा रही है./ up to date रचना के लिये हार्दिक बधाई ./सादर / कुंती
aaj bhi prasangik hae badhai, sir ji sadr
bahut sundar.verma ji badhai swikare
सत्रह वर्ष पूर्व लिखी रचना आज भी उतनी ही सामयिक क्योंकि हम आज भी वही है बल्कि मुखियाजी दायित्व
निर्वाह मेंतो और भी तल्ख़ टिप्पणी के लायक है,अब तो मुखिया जी न पद छोड़ना चाहते, न चीन के खिलाफ
कुछ करना चाहते संसद भी नहीं चल रही -
उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें
अतः मुख्या जी को पद की आन रखने के सलाह आज भी प्रासंगिक, हार्दिक बधाई श्री सुरेंद्र वर्माजी
आ0 सुरेन्द्र जी, वाह!....’’सपने बहुत देख लिए, अब तो जाग जाएं
हर वक्त एक ही राग बार बार क्यों गाएं
एक के बाद एक साथी. भाग न जाएं
उत्तरायण इच्छुक भीष्मजी! पहले रण तो करें!
मुखिया पद की आन, महाराज! कुछ करें’’ सुन्दर। बधाई स्वीकारे। सादर,
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