2122-2122-2122-212
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मुस्कुरा कर कह रही कुछ झुर्रियाँ बरसात में
देखीं थीं हमने कभी रंगीनियाँ बरसात में
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आज का बचपन न जाने कौन सी चिन्ता में गुम
अब नहीं कागज़ की दिखतीं कश्तियाँ बरसात में
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ज़ेह्न में रच बस गया है अब तो उनका ज़ायका
माँ खिलाती थी हमें जो पूरियाँ बरसात में
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आज घर में शाम को चूल्हा जलेगा किस तरह
कह रही मजदूर की मजबूरियाँ बरसात में
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मेरे घर की छत गिरी थी या गिरा था आसमाँ
जो हुईं उस रात थीं दुश्वारियाँ बरसात…
Added by दिनेश कुमार on June 17, 2015 at 8:34am — 14 Comments
2122-1122-22.
अपनी मंज़िल की जो हसरत करना
घर से चलने की भी हिम्मत करना
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कोई तुझको जो अमानत सौंपे
जान देकर भी हिफ़ाजत करना
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कहना आसान है करना मुश्किल
दुश्मनों से भी मुहब्बत करना
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आज बचपन में है वो बात कहाँ
वक़्त बे-वक़्त शरारत करना
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तेरे भीतर का ख़ुदा जाग उठे
इतनी शिद्दत से इबादत करना
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सिर्फ कहने को ही तेरा न हो वो
उसके दुख दर्द में शिरक़त करना
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फ़र्ज़ औलाद का यह होता 'दिनेश'
अपने माँ बाप की…
Added by दिनेश कुमार on June 10, 2015 at 10:46am — 16 Comments
१२१२-११२२-१२१२-२२
निग़ाहे नाज़ से देखो, करो शिकार मेरा
तुम आजमाओ सनम दिल ये एक बार मेरा
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तू आरज़ू है मेरी और तू है प्यार मेरा
तेरी वफ़ा पे है अब जीने का मदार मेरा
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तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने
तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा
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मुआमलात-ए-जवानी कहे नहीं जाते
न पूछ कौन है हमदम, कहाँ क़रार मेरा
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वो मुझसे बात तो करता है, पर वो बात नहीं
" बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा "
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वो बदगुमाँ है जो, कमज़र्फ़ मुझको…
Added by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 2:21pm — 20 Comments
Added by दिनेश कुमार on June 2, 2015 at 11:30pm — 18 Comments
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