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दिनेश कुमार's Blog – June 2015 Archive (4)

ग़ज़ल -- कश्तियाँ बरसात में

2122-2122-2122-212

.

मुस्कुरा कर कह रही कुछ झुर्रियाँ बरसात में

देखीं थीं हमने कभी रंगीनियाँ बरसात में

.

आज का बचपन न जाने कौन सी चिन्ता में गुम

अब नहीं कागज़ की दिखतीं कश्तियाँ बरसात में

.

ज़ेह्न में रच बस गया है अब तो उनका ज़ायका

माँ खिलाती थी हमें जो पूरियाँ बरसात में

.

आज घर में शाम को चूल्हा जलेगा किस तरह

कह रही मजदूर की मजबूरियाँ बरसात में

.

मेरे घर की छत गिरी थी या गिरा था आसमाँ

जो हुईं उस रात थीं दुश्वारियाँ बरसात…

Continue

Added by दिनेश कुमार on June 17, 2015 at 8:34am — 14 Comments

ग़ज़ल -- दुश्मनों से भी मुहब्बत करना .

2122-1122-22.

अपनी मंज़िल की जो हसरत करना

घर से चलने की भी हिम्मत करना

.

कोई तुझको जो अमानत सौंपे

जान देकर भी हिफ़ाजत करना

.

कहना आसान है करना मुश्किल

दुश्मनों से भी मुहब्बत करना

.

आज बचपन में है वो बात कहाँ

वक़्त बे-वक़्त शरारत करना

.

तेरे भीतर का ख़ुदा जाग उठे

इतनी शिद्दत से इबादत करना

.

सिर्फ कहने को ही तेरा न हो वो

उसके दुख दर्द में शिरक़त करना

.

फ़र्ज़ औलाद का यह होता 'दिनेश'

अपने माँ बाप की…

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Added by दिनेश कुमार on June 10, 2015 at 10:46am — 16 Comments

तरही ग़ज़ल -- " बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा " .

१२१२-११२२-१२१२-२२

निग़ाहे नाज़ से देखो, करो शिकार मेरा

तुम आजमाओ सनम दिल ये एक बार मेरा

.

तू आरज़ू है मेरी और तू है प्यार मेरा

तेरी वफ़ा पे है अब जीने का मदार मेरा

.

तेरे शबाब को नज़रों से क्यूँ पिया मैंने

तमाम उम्र न उतरेगा अब ख़ुमार मेरा

.

मुआमलात-ए-जवानी कहे नहीं जाते

न पूछ कौन है हमदम, कहाँ क़रार मेरा

.

वो मुझसे बात तो करता है, पर वो बात नहीं

" बहुत सलीक़े से रूठा हुआ है यार मेरा "

.

वो बदगुमाँ है जो, कमज़र्फ़ मुझको…

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Added by दिनेश कुमार on June 9, 2015 at 2:21pm — 20 Comments

ग़ज़ल -- मेहनत से कमाता हूँ मैं ...

२२१-१२२१-१२२१-१२२



तलवार से तीरों से न ख़ंज़र से लड़ा हूँ

ख़ुद अपनी अना ही के मुक़ाबिल मैं खड़ा हूँ



मेहमान नवाज़ी मैं दिलो जान से करता

दौलत तो नहीं पास मेरे, दिल का बड़ा हूँ



मेहनत से कमाता हूँ मैं हर अपना निवाला

ईमाँ की कसौटी पे मैं कुन्दन का कड़ा हूँ



घर के लिए राशन लूँ या बच्चों की किताबें

मँहगाई के इस दौर में, मुश्किल में पड़ा हूँ



कहते हैं मुझे लोग मुहब्बत का मसीहा

दुनिया से मैं नफ़रत को मिटाने पे अड़ा हूँ



ये… Continue

Added by दिनेश कुमार on June 2, 2015 at 11:30pm — 18 Comments

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