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मनोज अहसास's Blog – June 2020 Archive (3)

अहसास की ग़ज़ल: मनोज अहसास

2122  2122  2122  212

आदमी को आदमी से डर के बचता देखकर

अपना चेहरा ढक रहे हैं शहर ठहरा देखकर

ढूंढ कर ला दे कोई मुझको मेरे वो आइने

जिनमें तुझको देखता था अपना चेहरा देखकर

इससे बेहतर ज़िन्दगी का और क्या मकसद रहे

आदमी ज़िंदा रहे दुनिया को हँसता देखकर

हाथ को छूकर निकल जाता है मेरे हाथ से

मेरा मन घबरा गया है बहता दरिया देखकर

आपकी बातों पे मुझको अब यकीं बिल्कुल नहीं

आग को झुठला रहे हैं घर भी जलता…

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Added by मनोज अहसास on June 23, 2020 at 11:32am — 4 Comments

अहसास की ग़ज़ल :मनोज अहसास

22  22  22  22  22  22

ज्यादा चिंता से भी आखिर क्या होता है

जो सोचा,अक्सर उसका उल्टा होता है

कह देने से दर्द कहाँ हल्का होता है

कमजोरी का लोगों में चर्चा होता है

शाम ढले तो सब चीज़े धुंधली लगती हैं

सूरज फिर भी अगले दिन उजला होता है

जीवन का चक्कर चलता रहता है यों ही

हरियाली के बाद खेत सूखा होता है

कोई कहता रहता है मन की सब बातें

और किसी का दर्द सदा गूंगा होता है

पीड़ा के लम्हों में…

Continue

Added by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:36pm — 5 Comments

अहसास की ग़ज़ल :मनोज अहसास

22  22  22  22

रोज नए ढंग की उलझन है

सुलझाने का पूरा मन है

सबपे भारी बीसवाँ सन है

बच जाने का रोज जतन है

मेरे गीतों में ग़ज़लों में

तेरी यादों की कतरन है

मानव की ताकत की हक़ीक़त

गलियों का ये सूनापन है

सालों पहली कुछ बातों से

अब तक सीने में तड़पन है

मुझको जो उनसे कहना है

उनकी नज़र में पागलपन है

असली चेहरा ढक रक्खा है

सब चीजों पे रंग रोगन है

इन मिसरों के…

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Added by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:33pm — 2 Comments

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