2122 2122 2122 212
आदमी को आदमी से डर के बचता देखकर
अपना चेहरा ढक रहे हैं शहर ठहरा देखकर
ढूंढ कर ला दे कोई मुझको मेरे वो आइने
जिनमें तुझको देखता था अपना चेहरा देखकर
इससे बेहतर ज़िन्दगी का और क्या मकसद रहे
आदमी ज़िंदा रहे दुनिया को हँसता देखकर
हाथ को छूकर निकल जाता है मेरे हाथ से
मेरा मन घबरा गया है बहता दरिया देखकर
आपकी बातों पे मुझको अब यकीं बिल्कुल नहीं
आग को झुठला रहे हैं घर भी जलता…
Added by मनोज अहसास on June 23, 2020 at 11:32am — 4 Comments
22 22 22 22 22 22
ज्यादा चिंता से भी आखिर क्या होता है
जो सोचा,अक्सर उसका उल्टा होता है
कह देने से दर्द कहाँ हल्का होता है
कमजोरी का लोगों में चर्चा होता है
शाम ढले तो सब चीज़े धुंधली लगती हैं
सूरज फिर भी अगले दिन उजला होता है
जीवन का चक्कर चलता रहता है यों ही
हरियाली के बाद खेत सूखा होता है
कोई कहता रहता है मन की सब बातें
और किसी का दर्द सदा गूंगा होता है
पीड़ा के लम्हों में…
ContinueAdded by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:36pm — 5 Comments
22 22 22 22
रोज नए ढंग की उलझन है
सुलझाने का पूरा मन है
सबपे भारी बीसवाँ सन है
बच जाने का रोज जतन है
मेरे गीतों में ग़ज़लों में
तेरी यादों की कतरन है
मानव की ताकत की हक़ीक़त
गलियों का ये सूनापन है
सालों पहली कुछ बातों से
अब तक सीने में तड़पन है
मुझको जो उनसे कहना है
उनकी नज़र में पागलपन है
असली चेहरा ढक रक्खा है
सब चीजों पे रंग रोगन है
इन मिसरों के…
ContinueAdded by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:33pm — 2 Comments
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