2122 2122 212
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जो तुम्हारा है हमारा क्यों नहीं
ये किसी ने भी बताया क्यों नहीं
शह्र से मज़दूर आए गांव क्यों
वक़्त पर उनको सँम्हाला क्यों नहीं
लाख तारे आसमाँ पर थे मगर
इक भी मेरी छत पे आया क्यों नहीं
ख़्वाहिशों की भीड़ से ही पूछ लो
मुझको इक पल का सहारा क्यों नहीं
ज़िन्दगी भी दे रही ता'ना हमें
लफ़्ज़ खु़शियों का लिखाया क्यों नहीं
हारते हैं ग़म से "निर्मल" रोज़ ही
जीतना हमको सिखाया क्यों नहीं…
Added by Rachna Bhatia on June 6, 2020 at 9:00pm — 3 Comments
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