तपती धरा
छिड़क रहा नभ
धूप की बूंद
प्रचंड सूर्य
वीरान पनघट
झुलसी क्यारी
सूखे पोखर
जल रहा अंबर
प्यासे पखेरू
जलते दिन
भयावह गरमी
प्यासी है दूब
बिकता पानी
बढ़ता तापमान
जग बेहाल
दहकी धूप
गर्मी के दिन आये
निठुर बड़े
.... मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on June 11, 2019 at 4:00pm — 7 Comments
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