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Janki wahie's Blog – July 2016 Archive (3)

जश्न ऐ आज़ादी (लघु कथा ) जानकी बिष्ट वाही -नॉएडा

" बिट्टू और गुड़िया ! आज स्कूल नहीं जा रहे हो ? आज तो पन्द्रह अगस्त है।" दादा जी ने सिर पर गांधी टोपी रखते हुए कहा।



" दादा जी ! आज छोटे बच्चों की छुट्टी है।" 7 साल की गुड़िया बोली।



" अरे ,पन्द्रह अगस्त के दिन भी कोई छुट्टी करता है ? लड्डू मिलते हैं आज तो। ये आजकल के स्कूल भी ? ...बच्चे कैसे सीखेंगे आज़ादी के बारे में ।"



" दादा जी ! जुड़वाँ भाई बिट्टू ने उत्सुकता दिखाई , हमारी बहनजी ने बोला है, आज के दिन हमारा देश आज़ाद हुआ था।अब कोई छोटा - बड़ा नहीं है सब बराबर… Continue

Added by Janki wahie on July 15, 2016 at 5:23pm — 4 Comments

ममता और मौत की गलियाँ (लघु कथा ) जानकी बिष्ट वही

लगा कई दिन से छाए कुहासे बादल अपने सारे बन्धन तोड़ कर बरसने लगे।बिजली की कौंध और गरज़ से धरती काँपने लगी।ऊपर जंगल से बहते बरसाती नाले का उफान और शोर किसी के भी दिल को दहलाने के लिए काफी था।



शकुंतला ने अपनी पक्की छत वाले मकान में रज़ाई को कसकर लपेटते हुए सोचा - छोटा बेटा बिशनु अपनी घरवाली और बच्चों के साथ अपने कच्चे छप्पर में ठीक तो होगा ? बाप की जरा सी बात पर घर छोड़ अलग झोपड़ी बना कर रहने लगा। दिल कसकता है।उनके लिए।नींद आँखों से कोसो दूर थी।



" काहे करवट बदल रही हो ? लगता… Continue

Added by Janki wahie on July 12, 2016 at 8:05am — 6 Comments

दोस्ती और दग़ाबाजी (लघु कथा। ) जानकी बिष्ट वाही

सुबह से दोपहर होने को आई।बाहर चिलचिलाती धूप और अंदर घुटन। जगदीश ये समझ नहीं पा रहा कि मन की बैचेनी है या कुछ और।

चपरासी के हाथ वह अपने आने की ख़बर अंदर तक पहुंचा चुका है। रतनुवा (रतन) बचपन से जवानी तक,गाँव में दिन भर उसके पीछे -पीछे डोलता था।उसका जिगरी यार है।



" भाई ! एक बार और कह दो कि गाँव से जगदीश आया है।" उसने चपरासी की चिरौरी की।



चपरासी अंदर चला गया और तुरंत लौट कर बोला -

"अंदर मीटिंग चल रही है।"



अनपढ़ रतनुवा का भी राजयोग निकला।विपक्षी पार्टी ने… Continue

Added by Janki wahie on July 9, 2016 at 12:07pm — 15 Comments

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