वो मेरे पास, जाने क्यूँ, दबे-पाँव से आते हैं |
यही अंदाज़ हैं उनके, जो मेरा दिल, चुराते हैं ||
वो जब पहलू बदलते हैं, कभी बातों ही बातों में |
मुझे महसूस होता है, की वो कुछ कहना चाहते हैं ||
इरादा जब भी करता हूँ, मैं हाल-ए-दिल सुनाने का |…
Added by Shashi Mehra on July 20, 2011 at 8:30pm — 1 Comment
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 1:20pm — No Comments
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं |
वो, खुदा समान, महान हैं ||
वो ही, पैदा करते हैं, फसल को |
वो ही, जिन्दां रखते हैं, नस्ल को ||
वो तो, ज़िन्दगी करें, दान है |
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||
उन्हें, अपने काम से काम है |
वो कहें, आराम , हराम है ||
वो असल में, अल्लाह की शान हैं |
जिन्हें, लोग कहते, किसान हैं ||
जिन्हें, बस ज़मीन से, प्यार है |
करें जाँ, ज़मीं पे, निसार हैं ||
वो तो, सब्र-ओ-शुक्र की, खान हैं |
जिन्हें, लोग कहते,…
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 10:00am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 9:18am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 19, 2011 at 8:42am — 2 Comments
Added by Shashi Mehra on July 17, 2011 at 9:21pm — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 17, 2011 at 9:16pm — No Comments
वो लोगों के, दिलों में, झांकता है |
वो कुछ, ज्यादा ही लम्बी, हांकता है ||
Added by Shashi Mehra on July 14, 2011 at 10:00am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 13, 2011 at 12:30pm — 1 Comment
तिनका हूँ, शहतीर नहीं हूँ |
ज़िन्दां हूँ, तस्वीर नहीं हूँ ||
Added by Shashi Mehra on July 13, 2011 at 9:30am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 12, 2011 at 6:00pm — 2 Comments
इब्तदा थी मैं, इन्तहां समझा |
एक गुलचीं को, बागवान समझा ||
भूल कह लो, इसे या नादानी |
बेरहम को,था मेहरबाँ समझा ||
ज़हन में, इतने चेहरे, बसते हैं |
मैंने खुद को ही, कारवाँ समझा ||
खुद फरेबी में, ज़िन्दगी गुजरी |
झूठ को, सच सदा, यहाँ समझा ||
कोई मकसद नहीं है, जीने का |
बाद सब कुछ, 'शशि' गँवा समझा ||
Added by Shashi Mehra on July 11, 2011 at 8:03pm — 1 Comment
Added by Shashi Mehra on July 11, 2011 at 10:11am — 1 Comment
बातइतनी समझ में आई है |
झूठ ही आजकल सच्चाई है ||
सब में जलवा-नुमाँ, खुदा खुद है |
दहर है, ये जगह खुदाई है ||
हया,वफ़ा हैं किताबों में, इसलिए हर सू |
बे-हयाई है, बे-वफाई है ||
दावा बेकार है, किसी शेय पर |
सोच तक तो, यहाँ पराई है ||
जाँचना मत जहां में रिश्ते |
जिसने जांचे हैं, चोट खाई है ||
खेल ज़ारी है, जिंदगानी का |
जीत हारी है,मात पाई है ||
Added by Shashi Mehra on July 10, 2011 at 11:30am — No Comments
Added by Shashi Mehra on July 9, 2011 at 12:16pm — No Comments
यह चक्कर क्या है, कि चक्कर समय का |
चला रहता है, यह थमता नहीं है ||
बुढापा इस कदर, हावी हुआ है |
जो पच जाता था, अब पचता नहीं है ||
मेरे ज़ख्मों पे, मरहम मत लगाओ |
अब इससे भी तो, कुछ बनता नहीं है ||
बहुत मांगीं दुआएँ, थक गया हूँ |
दुआओं में असर, लगता नहीं है ||
वो, है तो साँप, पर आदत है उसकी |
डराता है सिर्फ, डंसता नहीं है ||
हमें लगता था, कि वह हस रहा है |
अस्ल मैं जो कभी, हँसता नहीं है…
Added by Shashi Mehra on July 9, 2011 at 10:30am — 1 Comment
Added by Shashi Mehra on July 8, 2011 at 6:34pm — No Comments
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