For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Blog – July 2013 Archive (7)

कविता : बादल, सागर और पहाड़ बनाम पूँजीपति

बादल

 

बादल अंधे और बहरे होते हैं

बादल नहीं देख पाते रेगिस्तान का तड़पना

बादलों को नहीं सुनाई पड़ती बाढ़ में बहते इंसानों की चीख

बादल नहीं बोल पाते सांत्वना के दो शब्द

बादल सिर्फ़ गरजना जानते हैं

और ये बरसते तभी हैं जब मजबूर हो जाते हैं

 

सागर

 

गागर, घड़ा, ताल, झील

नहर, नदी, दरिया

यहाँ तक कि नाले भी

लुटाने लगते हैं पानी जब वो भर जाते हैं

पर समुद्र भरने के बाद भी चुपचाप पीता…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 27, 2013 at 10:00pm — 5 Comments

लघुकथा : एकलव्य

द्रोणाचार्य आश्चर्यचकित थे। कुत्ते को बिना कोई नुकसान पहुँचाये उसका मुँह सात बाणों से भरकर बंद कर दिया था एकलव्य ने। ये विद्या तो द्रोणाचार्य ने कभी किसी को नहीं सिखाई। एकलव्य ने उनकी मूर्ति को गुरु बनाकर स्वाध्याय से ही धनुर्विद्या के वो रहस्य भी जान लिये थे जिनको द्रोणाचार्य अपने शिष्यों से छुपाकर रखते थे।

 

द्रोणाचार्य को रात भर नींद नहीं आई। उन्हें यही डर सताता रहा कि एकलव्य ने अगर स्वाध्याय से सीखी गई धनुर्विद्या का ज्ञान दूसरों को भी देना शुरू कर दिया तो द्रोणाचार्य के…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2013 at 9:00pm — 12 Comments

शृंगार रस के दोहे

साँसें जब करने लगीं, साँसों से संवाद

जुबाँ समझ पाई तभी, गर्म हवा का स्वाद

 

हँसी तुम्हारी, क्रीम सी, मलता हूँ दिन रात

अब क्या कर लेंगे भला, धूप, ठंढ, बरसात

 

आशिक सारे नीर से, कुछ पल देते साथ

पति साबुन जैसा, गले, किंतु न छोड़े हाथ

 

सिहरें, तपें, पसीजकर, मिल जाएँ जब गात

त्वचा त्वचा से तब कहे, अपने दिल की बात

 

छिटकी गोरे गाल से, जब गर्मी की धूप

सारा अम्बर जल उठा, सूरज ढूँढे कूप

 

प्रिंटर…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2013 at 2:34pm — 26 Comments

ग़ज़ल : ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर कारखानों पर

बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

----------------

ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर कारखानों पर

ये फन वरना मिलेगा जल्द रद्दी की दुकानों पर

 

कलन कहता रहा संभावना सब पर बराबर है

हमेशा बिजलियाँ गिरती रहीं कच्चे मकानों पर

 

लड़ाकू जेट उड़ाये खूब हमने रातदिन लेकिन

कभी पहरा लगा पाये न गिद्धों की उड़ानों पर

 

सभी का हक है जंगल पे कहा खरगोश ने जबसे

तभी से शेर, चीते, लोमड़ी बैठे मचानों पर

 

कहा सबने बनेगा एक दिन…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2013 at 11:46pm — 21 Comments

ग़ज़ल : ख़ुदा को मस्जिद में पा गया जो वो दौड़ मयखाने जा रहा है

बहर : १२१२२ १२१२२ १२१२२ १२१२२

-----------------

नहीं मिला जो जहाँ में जिसको वही उसे खींचता रहा है

ख़ुदा को मस्जिद में पा गया जो वो दौड़ मयखाने जा रहा है

 

वो जिसने माँगी थी सीट मुझसे ये कहके ईश्वर भला करेगा

जरा सा आराम पा गया तो मुझी को अब वो भगा रहा है

 

दवा से जो ठीक हो रहा था उसे पिलाया पवित्र पानी

जो दिन में अच्छा भला था कल तक वो रात भर चीखता रहा है  

 

ख़ुदा का घर सब जिसे समझते वहीं हजारों हुये लापता

बने…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 8, 2013 at 10:07pm — 3 Comments

ग़ज़ल : जो सरल हो गये

बहर : २१२ २१२

--------

जो सरल हो गये

वो सफल हो गये

 

जिंदगी द्यूत थी

हम रमल हो गये

 

टालते टालते

वो अटल हो गये

 

देख कमजोर को

सब सबल हो गये

 

भैंस गुस्से में थी

हम अकल हो गये

 

जो गिरे कीच में

वो कमल हो गये

 

अपने दिल से हमीं

बेदखल हो गये

 

देखकर आइना

वो बगल हो गये
---------------

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 4, 2013 at 9:48pm — 26 Comments

लघुकथा : पूँजीपति

दूर देश में एक बड़ा ही खुशहाल गाँव था। वहाँ के जमींदार साहब बड़े अच्छे आदमी थे। उनकी हवेली में पूजा पाठ, भजन कीर्तन हमेशा चलता रहता था। गाँव वाले मानते थे कि इस पूजा पाठ के प्रभाव से ही देवताओं की कृपादृष्टि उनपर हमेशा बनी रहती है। गाँव के बड़े बुजुर्ग तो ये भी कहते थे कि जमींदार साहब के पूजापाठ की वजह से ही गाँव पर भी देवताओं की कृपा हमेशा बनी रहती है। इसीलिए पिछले पचास वर्षों से इस गाँव में अकाल नहीं पड़ा।



पर भविष्य किसने देखा था। कुछ वर्षों बाद वहाँ भीषण अकाल पड़ा। गाँव वाले…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 1, 2013 at 11:30pm — 11 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
18 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service