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Saurabh Pandey's Blog – July 2014 Archive (2)

दादी, हामिद और ईद (लघुकथा) // --सौरभ

हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !

इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !

 

ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.

".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं…

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Added by Saurabh Pandey on July 29, 2014 at 3:00pm — 61 Comments

तीन विशेष कुण्डलिया // --सौरभ

1.

खर्चा-आमद एक सा, क्या नफरत क्या प्यार

छाना-फूँका पी लिया, फिर चिंता क्या यार

फिर चिंता क्या यार, गजब हूँ धुन का पक्का

रह-रह चढ़े तरंग, जगत भी हक्का-बक्का

रहता मस्त-मलंग, फाड़ता रह-रह पर्चा

और खुले ये हाथ, यहीं हर…

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Added by Saurabh Pandey on July 4, 2014 at 10:00pm — 24 Comments

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