वो मानते हैं कि हो सकती उनसे कोई खता नहीं
खुद तक तो खुदा के सिवा कोई और पहुंचता नहीं|
वो जुस्तजू करते हैं हमारे क़दमों के निशाँ की भी
उनके हाथों में छुपे खंजर को तो कोई खोजता नहीं|
वो जिन्होंने तय की हैं बुलंदियां लाशों की सीढ़ी पे
कदमों में लगे खून से कब फिसल जाएँ पता नहीं|
वो हो जाते हैं नाराज़ हमारी ज़रा सी लडखडाहट से
जैसे उनके जहां में मदमस्त तो कोई गिरता नहीं|
वो हैं जैसे भी दूर उनसे सोच में भी नहीं…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 14, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
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