जो चिरागों की लौ में पिघलता है
वो हसरतों को रौ में बदलता है .
तेरे वजूद पे भरोसा है जिसको
आस्माँ से गिर कर भी सँभलता है.
ख्व़ाब जो नींदों के पार रहता है
वो जागती आँख में मचलता है .
चाँद है ,तारे हैं, तन्हाइयाँ भी हैं
ये दिल किसे ढूँढने निकलता है.
हर कदम गुजरा इम्तहाँ से मेरा
हर मोड़ पर रास्ता बदलता है .
हासिल ए हयात अब भी बाकी है
सिर्फ याद से दिल नहीं बहलता है
.
-ललित…
ContinueAdded by dr lalit mohan pant on July 13, 2013 at 2:30am — 6 Comments
नाद- लय की ये नदी, फिर सूखती क्यों है?
निःशब्द बहती चेतना, फिर डूबती क्यों है?
है अधूरी जिंदगी ,सारे सवालों के जवाब
वो पहाड़े याद कर, फिर भूलती क्यों है ?
जब पवन जल अग्नि, आकाश धरती से
है जन्म लेती मूरतें, फिर टूटती क्यों है ?
जान कर भी जो कभी, लौट कर आया नहीं
ये बावरी तृष्णा उसे, फिर ढूँढती क्यों है ?
खूब रोता दिल…
Added by dr lalit mohan pant on July 4, 2013 at 1:00am — 11 Comments
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