(मात्रिक विन्यास -- २१२२ २१२२ २१२ )
इतनी आसाँ ज़िंदगी होगी नहीं
मुश्किलों से दोस्ती होगी नहीं |
दर्द से कागज़ पे करना रौशनी
हर किसी से शाइरी होगी नहीं |
रुक न पाया सिलसिला जो बाँध का
कल के दिन भागीरथी होगी नहीं |
इस तरह कुचला गया जो हर गुलाब
फिर किसी घर में कली होगी नहीं |
मुद्दतों के बाद याद आया कोई
मेरे घर अब तीरगी होगी नहीं |
- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 25, 2013 at 7:00pm — 24 Comments
( २१२२ २१२२ २१२ )
क्या हुआ कोशिश अगर ज़ाया गई
दोस्ती हमको निभानी आ गई |
बाँधकर रखता भला कैसे उसे
आज पिंजर तोड़कर चिड़िया गई |
चूड़ियों की खनखनाहट थी सुबह
शाम को लौटी तो घर तन्हा गई |
लहलहाते खेत थे कल तक यहाँ
आज माटी गाँव की पथरा गई |
कैस तुमको फ़ख्र हो माशूक पर
पत्थरों के बीच फिर लैला गई |
आज फिर आँखों में सूखा है 'सलिल'
जिंदगी फिर से तुम्हें झुठला गई |
-- आशीष नैथानी 'सलिल'…
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 5, 2013 at 8:00pm — 16 Comments
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