कपड़ा-लत्ता बाँधि कै
जावैं अपने देस
कितने दिनन बिता गए
तबहुँ लगै परदेस
पहुचैं अपने द्वार-घर
लक्ष्य यही बस एक
जा खेती - बाड़ी करैं
आलस करैं न नेक
धूप - ताप मा बिन रुके
चले जाँय सब गाँव
सोचत जात , थमें नहीं
मिले जो चाहे छाँव
नदियन नाला केर सब
कचरा देब हटाय
लहर-लहर बहियैं सबै
धरती पियै अघाय
बबुआ से कहिबै चलौ
गइया लेइ खरीद
दूध, दही , मट्ठा…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 30, 2020 at 11:27pm — 2 Comments
झाँका , झाँका , देखो झाँका
चाँद हमारे अँगना
आने वाला है कोई
बाजे मेरा कँगना
हो, हो , हो , हो
झाँका, झाँका , देखो झाँका
सुहाना समां है
खुला आसमां है
करतीं ठिठोली
तारों की टोली
झूमे , झूमे , देखो झूमे
आज हमारे अँगना
आने....
बहे पुरवइया
डोले मन की नैया
मौसम की घड़ियाँ
जादू की छड़ियाँ
फेरें , फेरें , जादू फेरें
आज हमारे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 21, 2020 at 11:35pm — 8 Comments
पढ़ी - लिखी जो गृहणियाँ
देखें निज परिवार
घर में बूढ़ी सास हैं
और श्वसुर लाचार
शिशु जिनके हैं पालने
सेवा की दरकार
आया पर छोड़ें नहीं
सहें स्वयं सब भार
गढ़ती हैं व्यक्तित्व वह
जिस विधि कोई कुम्हार
खोट सुधार सहन करें
चाहे विघ्न हजार
सदा करें निष्काम हो
सबके सुख की वृद्धि
प्रेम , हर्ष , ऐश्वर्य की
होती तभी समृद्धि
घर कुटुम्ब के हेतु जो
अपना सुख दे…
ContinueAdded by Usha Awasthi on August 19, 2020 at 7:24pm — 8 Comments
जब मन वीणा के तारों पर
स्वर शिवत्व झन्कार हुआ
चिरकालिक,शाश्वत ,असीम
प्रकटा , अमृत संचार हुआ
निर्गत हुए भविष्य , भूत
वर्तमान अधिवास हुआ
कालातीत, निरन्तर,अक्षय
महाकाल का भास हुआ
शव समान तन,आकर्षण से
मन विमुक्त आकाश हुआ
काट सर्व बन्धन इस जग के
परम तत्व , निर्बाध हुआ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on August 3, 2020 at 10:30am — 4 Comments
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