त्याग, बलिदान, जोश, श्रम
चार पावों पर खड़ी हूँ मैं
सत्ता की मै बन धुरी
चमक-धमक से सजी-धजी
जादू की फूलझड़ी हूँ मैं
सपनों की सुंदर परी हूँ||
महत्वकांक्षा की कड़ी हूँ मैं
स्वागत को तेरे खड़ी हूँ मैं
धैर्य की सबकी परीक्षा लेती
कर्म मार्ग की लड़ी हूँ मैं
नियत, मेहनत का मूल्यांकन करती
तेरे सुख-दुख की कड़ी हूँ मैं||
उठक-बैठक कर खेल…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 27, 2019 at 4:21pm — 2 Comments
कभी खूनी, कभी कातिल
कभी गुनाहों का मार्ग कहलाती
जुर्म को होते देख चीखती
खून खराबे से मैं थर्राती
कभी खून की प्यासी तो
कभी डायन हूँ कहलाती
चाह के भी कुछ कर ना पाती
बेबसी पर नीर बहाती ||
हैवानियत की, कभी बलात्कार की,
ना चाह मैं साक्षी बनती
हत्या कभी षडयंत्रो का
अंजान देने पथ भी बनती
तैयार की गई हर साजिश को
हादसो का मैं नाम दिलाती…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 20, 2019 at 4:29pm — 2 Comments
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