अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
रोते-बिलखते लोगों को फिर एक बार हंसाये हम.
जो अब तक सही आजादी पाने से महरूम है.
जो अपने घर में आज भी बेबस लाचार मजलूम है.
स्वतंत्र देश में जकड़े है जो गुलामी की जंजीरों से.
खेलते है देश के नेता जिनके मासूम तकदीरों से.
जो तन्हा भूखे-नंगे सोते है आसमान के नीचे.
उनके बंजर चेहरों को आओ मिलकर सींचे.
उनके रहने खातिर एक आशिया बनाये हम.
अबकी बार आजादी कुछ इसतरह मनाये हम.
उखाड़ फेके…
ContinueAdded by Noorain Ansari on August 15, 2011 at 9:30am — 5 Comments
काँटों से नहीं मुझको तो फूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
घबडाते नहीं है अब हम तो गम के आने-जाने से.
हाँ,चौक जरूर जाते है खुशियों के झलक दिखाने से,
अश्कों की आँख-मिचौली में नैनों के सपने टूट गये.
सदा डरते रहे हम गैरों से, अपनों के हाथों लूट गये.
अब तो बदनामों से ज्यादा मक़बूलों से डर लगता है.
मतलब परस्त दोस्तों के वसूलों से डर लगता है.
अफ़सोस,ये जिंदगी दुनिया के रंग में हम ऐसे घूल…
ContinueAdded by Noorain Ansari on August 3, 2011 at 7:30pm — 6 Comments
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