बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
चार मित्रों, चार चेलों से मिली क्या वाह वाह
मैं समझने लग गया ख़ुद को ग़ज़ल का बादशाह
एक चेले की जुबाँ दी काट मैंने इसलिए
बात मेरी काटने का कर दिया उसने गुनाह
बात क्या है, क्यूँ है, कैसे है मुझे मतलब नहीं
मंच पर पहुँचूँ तो फिर मैं बोलता धाराप्रवाह
अब सिवा मेरे न इसको प्यार कर सकता कोई
हो गया है शाइरी का आजकल मुझसे निकाह
चार छः चमचे मिले, माइक मिला, माला…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 27, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
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उनकी आँखों में झील सा कुछ है
बाकी आँखों में चील सा कुछ है
सुन्न पड़ता है अंग अंग मेरा
उनके हाथों में ईल सा कुछ है
फैसले ख़ुद-ब-ख़ुद बदलते हैं
उनका चेहरा अपील सा कुछ है
हार जाते हैं लोग दिल अकसर
हुस्न उनका दलील सा कुछ है
ज्यूँ अँधेरा हुआ, हुईं रोशन
उनकी यादों में रील सा कुछ है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 23, 2015 at 12:00am — 16 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२
श्रोडिंगर ने सच बात कही
हम जिन्दा भी हैं मुर्दा भी
इक दिन मिट जाएगी धरती
क्या अमर यहाँ? क्या कालजयी?
उस मछली ने दुनिया रच दी
जो ख़ुद जल से बाहर निकली
कुछ शब्द पवित्र हुए ज्यों ही
अपवित्र हो गए शब्द कई
जिस दिन रोबोट हुए चेतन
बन जाएँगें हम ईश्वर भी
मस्तिष्क मिला बहुतों को पर
उनमें कुछ को ही रीढ़ मिली
मैं रब होता, दुनिया…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 16, 2015 at 2:57pm — 19 Comments
खुद को देशभक्त समझने वाले राम ने रहीम से कहा, “तुमने देशद्रोह किया है।”
रहीम ने पूछा, “देशद्रोह का मतलब?”
राम ने शब्दकोश खोला, देशद्रोह का अर्थ देखा और बोला, “देश या देशवासियों को क्षति पहुँचाने वाला कोई भी कार्य।”
बोलने के साथ ही राम के चेहरे का आक्रोश गायब हो गया और उसके चेहरे पर ऐसे भाव आए जैसे किसी ने उसे बहुत बड़ा धोखा दिया हो। न चाहते हुए भी उसके मुँह से निकल गया, “हे भगवान! इसके अनुसार तो हम सब....।”
रहीम के होंठों पर मुस्कान तैर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 1, 2015 at 12:30pm — 35 Comments
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