ग़ज़ल
(वहर 22 22 22 22 2 )
वो फिर घुस आया ,मन के समन्दर I
मैं छोड़ आया जिसे मन्दिर अंदर II
सब कसमें लेते हैं बदले की ,
अब रहे कहां बापू के बन्दर I
आजिज कोई हो नेमत देता ,
है कोई ऐसा मस्त कलन्दर I
अबरोधों से खुद है तुम्हें लड़ना ,
सम्भालो तुम अपने सभी सन्दरI
धन बल ज्ञान न बंधे जाति में ,
कौन यहाँ मुफलिस कौन सिकन्दर I
"मौलिक एवं अप्रकाशित "
Added by कंवर करतार on September 18, 2015 at 10:30pm — 4 Comments
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