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Rajni chhabra's Blog – September 2010 Archive (3)

राम या रहमान

वह बोझिल मन लिए

उदास उदास

निहार रहा अपनी कुदरत

खड़ा क्षितिज के पास

मिल कर भी

नहीं मिलते जहाँ

दो जहां



अपनी अपनी आस्था की धरा पे

कायम हैं उसके बनाये इंसान

हो गए हैं जिनके मन प्रेम विहीन

बिसरा दिए हैं जिन्होंने दुनिया और दीं



इस रक्त रंजित धरा पर बिखरे

खून के निशाँ

वही नही बता सकता

उन्हें में कौन है

राम और कौन रहमान



बिसूरती मानवता के यह अवशेष

लुटती अस्मत,मलिन चेहरे,बिखरे केश



सुर्ख… Continue

Added by rajni chhabra on September 30, 2010 at 3:00pm — 4 Comments

इंतज़ार


तू
लौट आ
वेरना
मैं यूँ ही
जागती रहूंगी
रात रात भर
चाँदनी रातों मैं
लिख लिख कर
मिटाती रहूंगी
तेरा नाम
रेत पर
और हेर सुबह
नींद से
बोझिल पलकें लिए
सुर्ख,उनींदी
आंखों से
काटती
रहूंगी
कलेंडर से
एक और तारीख
इस सच का
सबूत
बनते हुए
की
एक
और रोज़
तुझे
याद किया
तेरा नाम लिया
तुझे याद किया
तेरा नाम लिया

Added by rajni chhabra on September 22, 2010 at 11:00pm — 1 Comment

वो ज़हान मेरा नही

वो ज़हान
मेरा नही
जहाँ
तेरी खुशबू
न हो
तेरी यादें न हो
जिक्र न हो
जहाँ तेरा
वो महफिल
मुझे रास आती नही

Added by rajni chhabra on September 4, 2010 at 3:30pm — 4 Comments

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