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जिसकी रही कभी नहीं आदत उड़ान की
अल्फ़ाज़ खूबियाँ कहें खुद उस ज़ुबान की
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भोगा हुआ यथार्थ जो सुनाइये, सुनें
सपनों भरी ज़ुबानियाँ दिल की न जान की..
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जिसके खयाल हरघड़ी परचम बने उड़ें
वो खा रहा समाज में इज़्ज़त-ईमान की ..
*
जिनके कहे हज़ारहा बाहर निकल पड़े
ऐसी जवान ताव से चाहत कमान की..
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जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का
ये सोच खुश हुआ बढ़ी कीमत दुकान की.
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हर नाश से उबारता, भयमुक्त जो…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on September 1, 2011 at 9:30am — 15 Comments
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