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Manan Kumar singh's Blog – September 2015 Archive (6)

गजल(मनन)

122 122 122 122

हिमालय बना था पड़ा ढल रहा हूँ

पिघलकर बना मैं नदी चल रहा हूँ।

उसाँसें धरा की सहेजे-सहेजे

बना मैं घटा कर अभी मल रहा हूँ।

बहा हूँ कभी मैं ढुलकता रहा था

अभी भी उसी आँख में पल रहा हूँ।

रही आग है जो जलाती- बुझाती

उसी आग में मैं अभी गल रहा हूँ।

जली थी कभी जो कहूँ नेह-बाती

अभी मैं वही लौ बना जल रहा हूँ।

पला था सपन जो घनेरे-घनेरे

रंगा मन उसीमें अभी चल रहा हूँ।

उषा की नवेली किरण तब हँसी थी

कभी बल रहा मैं कभी जल रहा… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 29, 2015 at 2:59pm — 4 Comments

गजल

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन



तू भले कुछ भी कहे मैं कामना करता रहूँगा

रूप रस की चाहना- आराधना करता रहूँगा।

जल रहा संसार खुद से आग अपनी ही जलाये

बाँट आया प्यार घर- घर याचना करता रहूँगा।

जो लगाते आग चलते ज्वाल उनको हो मुबारक

मैं चला हूँ मेघ बनकर साधना करता रहूँगा।

दे रही जो दर्द चपला कर सकूँ बे-दर्द उसको

हो धरा मैं सोंख लूँ यह कामना करता रहूँगा।

आदमी हो आदमी का हो गया सब भूलकर भी

आदमी के हित रहूँ मैं प्रार्थना करता…

Continue

Added by Manan Kumar singh on September 22, 2015 at 10:00pm — 8 Comments

गजल

गजल छंद-दिक्पाल/मृदुगति
मापनी221 2122 221 2122
होता वही कभी जो चाहा किया समय है
होता रहा कभी जो करता चला समय है।
चाहा बहुत कि मोडूँ उलटा चलन हुआ कब
मानी न ही कभी तो उसने बड़ा समय है।
खूबी रही वही हाँ ना की अभी कहूँ तो
छू ले गगन अभी वो सीढ़ी लगा समय है।
चाहा उसे बना दूँ अवतार नज्म का मैं,
उड़ती रही घटा सी हर पल रहा समय है।
उसकी अदा नफीसी कैसे करूँ बयाँ मैं,
नजरें बचा नजर कर लेती फिरा समय है।
मौलिक व अप्रकाशित

Added by Manan Kumar singh on September 10, 2015 at 10:00am — 9 Comments

गजल

2122 2122 2122

लग गये दिल चाँद अब धरती उतारें।

ठान ली है आ यहीं सरसी उतारें।

खूब मचली हैं घटायें झूमती- सी

आ अभी उनको जली परती उतारें।

सूखती जो दूब भी अब चाहती है

जिंदगी कुछ पल अभी मरती उतारें।

आरजू तब की हमारी माँगती कुछ

अब तलक घातें रहीं ठगती उतारें।

हो चुकी बातें बहुत बोलूँ कहूँ क्या

हो गयी जो बात अब जगती उतारें।

मौन आँखों से भिंगोने थी चली वह

रह गयी जाने कहाँ चरती उतारें।

ख्वाहिशें अबतक थमी थीं नामुरादें

रे नहीं फिर वे… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 7, 2015 at 8:26pm — 5 Comments

गजल(मनन)

हर तरफ आखिर हँसी छा गयी है

आज कौवे को चिड़ी भा गयी है।



काँव कितनी बार करता रहा वह,

ठाँव उसके आज मैना गयी है।



टक लगा बगुला रहा था कभी से,

चोंच मछली एक छलक आ गयी है।



देख वंशी है लगी हो कहीं कुछ,

लोग बोलें टोना' ले जा गयी है।



साँढ़ बूढ़ा कुलबुलाया शहर में,

देख बछिया खुद अचंभा गयी है।



विश्व-जय सी हो गयी तो अभी है

कंत-घर अमृत नवोढ़ा गयी है।



बाग़ में बुलबुल अभी गा रही थी,

क्यूँ न जाने चुप हवा छा गयी…

Continue

Added by Manan Kumar singh on September 6, 2015 at 7:30pm — 5 Comments

पता(पता)

पता(लघु कथा)

-आप मुम्बई में रहते हो?मैंने तो कुछ और सोचा था।मैं भी तो मुम्बई में ही हूँ।

-अच्छा,कहाँ?

-एन एम

-वो क्या हुआ?

-मुम्बईकर को तो जानना चाहिये

-अच्छा,बताइये

-लेकिन यह आपको पता होना चाहिए

-अपना पता न बताने के बहुत-से बहाने होते हैं।

-आप एन एम नहीं जानते,तो मुम्बई में क्या जानते हैं?

-दोस्तों को जो अपने पते कभी कुछ,तो कभी कुछ बताते हैं ।

-देखिये,कोल्हापुर तो मेरा मायका है,मुम्बई तो ससुराल हुई।

फिर किंचित ख़ामोशी के उपरांत फेसबुक… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 3, 2015 at 7:53am — 12 Comments

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