1222 1222 1222 1222
न जाने धूल कब से झोंकता था मेरी आँखों में!
जो इक दुश्मन छुपा बैठा था मेरे ख़ैरख़्वाहों में!
भटकते फिरते थे गुमनाम होकर जो उजालों में!
हुनर उन जुगनुओं का काम आया है अंधेरों में!
फ़क़त इक वह्म था,धोखा था बस मेरी निगाहों का,
अलग जो दिख रहा था एक चेहरा सारे चेहरों में!
हक़ीक़त के बगूलों से हुए हैं ग़मज़दा सारे,
हुआ माहौल दहशत का,तसव्वुर के घरौंदों में!
ख़ता इतनी सी थी हमने गुनाह-ए-इश्क़…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 26, 2016 at 5:19pm — 9 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2016 at 8:57pm — 10 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on September 10, 2016 at 8:15pm — 3 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |