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बिक रही अब तो मुहब्बत दोस्तों (ग़ज़ल)

(2122  2122  212)
बढ़ रही ख़्वाहिश-ए-दौलत दोस्तों..
बिक रही अब तो मुहब्बत दोस्तों..
-
कब रुकेंगी जाने नदियां ख़ून की,
ख़त्म होगी कब ये नफ़रत दोस्तों..
-
न्याय की उम्मीद अब तुम छोड़ दो,
हैं बहस भर ही अदालत दोस्तों..
-
दिल में उनके है नहीं मेरी जगह,
क्यों हमें उनकी है चाहत दोस्तों..
-
टूटने का डर नहीं लगता हमें,
दिल लगाने की है आदत दोस्तों..
-
कद्र करता है कलम की 'जय' तभी,
देती है उसको ये इज़्ज़त दोस्तों..
(मौलिक व अप्रकाशित)
~
~
जयनित कुमार वर्मा
अररिया,बिहार

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Comment by जयनित कुमार मेहता on May 2, 2016 at 7:18pm
आप सभी का हार्दिक आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2015 at 12:01pm

आदरणीय जयनित भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 20, 2015 at 10:16pm

अच्छे अश’आर हुए हैं जयनित साहब, दाद कुबूलें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 20, 2015 at 11:55am

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है जयनित जी सभी अशआर बढ़िया हुए हैं दिल से बधाई लीजिये .जिस पर शिज्जू भैया ने न्यायसंगत इशारा दिया है उस को आप इस तरह कर सकते हैं आपके भाव व् शब्द बरकरार रहेंगे ---- बढ़ रही दौलत कि ख्वाहिश दोस्तों /ख्वाहिशें दौलत की ऊँची/कितनी दोस्तों 

इस तरह थोड़े से शब्दों के फेर से आपकी बह्र सही रहेगी और भाव वही रहेंगे .

Comment by मनोज अहसास on September 17, 2015 at 8:46pm
बढ़िया ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई। बाकी गुणीजन कह ही चुके है। सादर।
Comment by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2015 at 5:27pm
"बढ़ रही ख्वाहिशे-दौलत दोस्तों" क्या ये मिसरा बह्र में फिट होगा, शिज्जु 'शकूर' जी..??

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 4:22am
बढ़िया ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई। बाकी गुणीजन कह ही चुके है। सादर।
Comment by Samar kabeer on September 16, 2015 at 10:46pm
जनाब जयनीत कुमार जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
जनाब शिज्जु 'शकूर' जी सही कह रहे हैं,उनकी बात पर ध्यान दीजियेगा ।
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 2:41pm
जी सर क्षमा चाहेंगे

यहाँ पर दिल 2 गिन गया है
और में की मंत्राभार गिराया गया है
अब समझ गए
आप का सादर धन्यवाद
आगे भी आप के आशीर्वाद के
अकांकशी रहेगे
नमन
Comment by Ravi Shukla on September 16, 2015 at 2:33pm

आदरणीय जयनित जी ग़जल के कथ्‍य के लिये बधाई स्‍वीकार करें । साथ ही शिज्‍जू जी आपकी इजाफत पर उस्‍तादाना नज़र के लिये  आभार इससे हमारे भी प्रयास को दिशा मिलेगी ।

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