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भाई जयनित जी, आपकी कोशिशों के लिए हार्दिक बधाइयाँ .
कई अश’आर अपने कथ्य और सोच से उम्मीद जगाते हैं. जैसे -
आरज़ू थी बहुत, मनाऊँ उसे
उफ़! मगर वो कभी ख़फ़ा न हुआ
तब तलक ख़ुद से मिल नहीं पाया
जब तलक ख़ुद से गुमशुदा न हुआ
शुभेच्छाएँ
आ. जयनित जी, अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
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