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दिलीप कुमार तिवारी's Blog – September 2013 Archive (3)

मै आदमी हूँ / दिलीप कुमार तिवारी

 मै आदमी हूँ

सम्बेदंशील हूँ

मुझे  कई आदमी

कहलाए जाने वालों

ने   छला है I



छाछ फूककर  

पीता हूँ हर-बार

क्यों की मेरा मुह

दिखावे के गर्म दूध से जला है I I



कल्पनाओ का समंदर

मेरे मन में भी है

कुछ पाने की चाह में

जीवन की राह  में  तुमसे मिला है I I I



मुझे रोकना नहीं

टोकना नहीं तुम

बढने दो मेरे पैर

ये हमारी दुश्मनी बदल कर

दोस्ती का सिलशिला है I I I I



मौलिक /अप्रकाशित

दिलीप कुमार तिवारी…

Continue

Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 11, 2013 at 12:59am — 12 Comments

"मजदूर "

तपती वसुन्धरा  में 
श्रम सक्ती के समन्वय रूपी खाद में
निर्माणों के

विशालकाय पेंड़ो को रोपता है
अपने कंधो के सहारे ढोता है

गरीवी का बोझ
जिसमे उसका स्वाभिमान

दबा हैं , कुचला है
मन अनंत गहराईयों में

डूबता उतराता चुप है
शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है
निर्माणों के अंधे युग में  आज
निर्माण से ही दूर हो गया है


मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप तिवारी  रचना -८ /९/१ ३

Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 8, 2013 at 1:30am — 11 Comments

मेरा मन

मन का "सुदामा होना"लाज़मी था 

तेरी आखो के कृष्ण का इतना असर हो गया

क्या होती है गरीवी

सब कुछ खो जाने के बाद समझा

नही ,आमीर आदमी था

ये मिलन का इंतजार "द्रोपदी का चीर" हो गया

"भगीरथ प्रयत्न" कर-कर

मन आज अधीर हो गया

फिर भी "अग्नि परीक्षा" मेरी अधूरी है

आज भी मेरी-तेरी दूरी है

 अंतर ह्रदय  "दूर्वासा"है

क्रोध के ताप मे भी मिलने की आशा है

जानता है मन मिल कर तुमसे कुबेर हो जाएगा

संताप के ताप से फिर दूर हो जाएगा …



Continue

Added by दिलीप कुमार तिवारी on September 8, 2013 at 1:00am — 8 Comments

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