तेजी से घूम रहे चक्र पर
हम ठेल दिये गए हैं
किनारों की ओर
जहां
महसूस होती है सर्वाधिक
इसकी गति
ऊंची उठती है उर्मियाँ
जैसे जैसे हम बढ़ते हैं
केंद्र की ओर
सायास
स्थिरता बढ़ती जाती है
प्रशांत हो जाती है तरंगे
सत्य का बोध
अनावृत होने लगता है
अनुभव होता है एकात्म का ....
.............. नीरज कुमार नीर
Added by Neeraj Neer on September 26, 2015 at 12:37pm — 5 Comments
भारत के अंबर पर देखो
सूर्य सी हिन्दी चमक रही है
माँ भारती के उपत्यका में
खुशबू बनकर महक रही है
विभिन्न प्रांतों का सेतुबंधन
सरल सर्वजन सर्वप्रिय है
दक्षिण से उत्तर पूर्व पश्चिम
दम दम दम दम दमक रही है
संस्कारों की वाहक हिन्दी
सभी भाषाओं में यह गंगा
प्रगति पथ पर नित आरूढ़ ये
पग नवल सोपान धर रही है
यूरोप अमेरिका ने माना
है यह भाषा समर्थ सक्षम
हम भारतियों के दिल में…
ContinueAdded by Neeraj Neer on September 14, 2015 at 7:59am — 6 Comments
सोनाली भट्टाचार्य एवं सभी तेजाब पीड़ितों के लिए
वह एक लड़की थी
उन्नत नितंबों
पुष्ट उरोजों वाली
श्यामल घनेरे केश
बल खाते पर्वतों के बीच
लहराते
लगता बाढ़ की पगलाई नदी
मेघों के मध्य
घाटी में से गुजर रही हो
खुलकर खिलखिला कर हँसती
कई सितार एक साथ झंकृत हो उठते
उसके सपनों में आता
फिल्मी राजकुमार
जिसके साथ वह
गीत गाती झूमती नाचती
फूलों के बाग में
स्कूल कॉलेज से आती जाती
सबकी निगाहों की केंद्र बिन्दु
सबके…
Added by Neeraj Neer on September 13, 2015 at 5:17pm — 12 Comments
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