“बेटे सुजित, कहाँ हो” शर्मा जी अपनी चाबी से मुख्य दरबाजा खोलते ही अंदर अँधेरा देख बोले Iआबाज लगाते लगाते ही घर की बत्तियाँ जलाने लगे Iज्यों ही बेटे वाले कमरे की बत्ती का बटन दबाया, कक्षा दो में पढ़ने बाले बेटे को मोबाइल पर अपने नन्हें दोस्तों से व्हाट्स एप पर चैटिंग करते देख डांटते हुए बोले, “हर समय बस चैटिंग-चैटिंग, कुच्छ होम वर्क कर लेते I उठो, जाओ अपना होम वर्क करो I”
“आइ एम सॉरी पापा --” रुआंसा हुआ सुजित बोला, “ पर पापा --आप सुवह मेरे स्कूल जाने से पहले आफिस निकल जाते हो और…
ContinueAdded by कंवर करतार on October 7, 2015 at 10:00pm — 6 Comments
ग़ज़ल
(वहर : 2212 2212 2212 2212 )
वो दुश्मनी की सब हदों को पार करता ही रहा I
मैं माफ़ उसको जान कर हर बार करता ही रहा II
जो आह भर भर हर समय थे देखते राहें सदा ,
उनके दिलों से वो सदा व्यापार करता ही रहा I
दिल से न शाया था हटा, कुछ तो नजर ढूंढे तभी ,
पहचानता है क्या उसे, इनकार करता ही रहा I
राजा दिलों का वो बनें, है मर नहीं…
ContinueAdded by कंवर करतार on October 2, 2015 at 2:23pm — 10 Comments
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