२१२२/ १२१२/ २२ (११२)
ख़त हमारे अगर जलाता है
राख दुनिया को क्यूँ दिखाता है.
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हम को उम्मीद है तो ग़ैरों से,
कौन अपनों के काम आता है?
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सुन रखी होगी आग जंगल की
क्यूँ शरर को हवा दिखाता है.
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शम्स मुझ सा शराबी है शायद
शाम ढलते ही डूब जाता है.
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ज़र्द चेहरा है बाल बिखरे हैं
इस तरह कौन दिल लगाता है.
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देख! दुनिया का कुछ नहीं होगा
ख्वाहमखाह इस में सर खपाता है.
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इस पे चलता है रब्त का धंधा
कौन क्या…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2017 at 1:00pm — 34 Comments
२१२२, १२१२, २२ (११२) +१
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किसी साधू के गहरे ध्यान से हम
बैठे रहते है इत्मिनान से हम.
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तुम हो इक टूटती हुई दीवार
एक ढहते हुए मकान से हम.
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गर ख़ुदा को वहाँ नहीं पाया,
लौट आयेंगे आसमान से हम.
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बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें
ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम.
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बुतकदे में जलाने को दीपक
जाग जाते हैं इक अज़ान से हम.
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एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत
साथ में थे बड़े जवान से हम.
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वस्ल का पल, ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2017 at 8:18am — 21 Comments
२२/२२/२२/२२/
कर्म अगर साधारण होगा
कैसे नर...नारायण होगा.
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सच्चाई की राह चुनी है
पग पग दोषारोपण होगा.
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जिस के भीतर विष का घट है
उस पर छद्म-आवरण होगा.
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कठिनाई भी बहुत ढीठ है
इस से जीवन भर रण होगा.
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बस्ती बाद में सुलगाएँगे
पहले प्रेम पे भाषण होगा.
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मन में दृढ़ विश्वास न हो फिर
कैसे कष्ट निवारण होगा.
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दसों दिशाओं में शासन है
शासक .. शायद रावण होगा.
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उजड़ेगा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 3:52pm — 29 Comments
२२१२, १२२; २२१२, १२२ (अरकान का क्रम भिन्न भी हो सकता है)
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तन्हाइयों के गहरे जंगल में रात काटी
तृष्णाओं से भरे इक मरुथल में रात काटी.
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जब रौशनी बढ़ा कर चन्दा ने उस को छेड़ा
शरमा के चाँदनी ने बादल में रात काटी.
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चुगली न कर दे बैरन थी जान कश्मकश में
बाहों में थे पिया और पायल में रात काटी.
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साजन का नाम जपते अधरों का थरथराना,
बिरहन के मुख पे फैले काजल में रात काटी.
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हर कूक ने उठाई है हूक मेरे दिल में …
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 5, 2017 at 1:27pm — 19 Comments
२२, २२, २२, २२
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सीने से चिमटा कर रोये,
ख़ुद को गले लगा कर रोये.
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आईना जिस को दिखलाया,
उस को रोता पा कर रोये.
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इक बस्ते की चोर जेब में,
ख़त तेरा दफ़ना कर रोये.
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इक मुद्दत से ज़ह’न है ख़ाली,
हर मुश्किल सुलझा कर रोये.
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तेरी दुनिया, अजब खिलौना,
खो कर रोये, पा कर रोये.
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सीखे कब आदाब-ए-इबादत,
बस,,,, दामन फैला कर रोये.
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हम असीर हैं अपनी अना के,
लेकिन मौका पा कर रोये.
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सूरज…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 3, 2017 at 9:00pm — 28 Comments
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