For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मनोज अहसास's Blog – October 2015 Archive (3)

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212





कल्पना का पथ टटोलें कुछ समय की आह सुन

इस तरह निभ जाये शायद अपनी चाहत अपनी धुन



उनकी यादों की कोई सीमा कोई मंज़िल भी है

मुड़ हकीकी से मजाज़ी या जगत की पीर बुन



बेगुनाही का मज़ा इस बात से दुगना हुआ

मेरे कातिल ने कहा है खुद सजा की राह चुन



एक मिसरा उनपे भी हो जिनसे होती है ग़ज़ल

फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन



प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है

वो न मेरा नाम लेती है कहती है बस मेरे…

Continue

Added by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 2:00pm — 18 Comments

वो जाग रहे हैं

वो जाग रहे हैं

दिन है फिर भी जाग रहे हैं

अक्सर वो रात में जागते है

अँधेरी और खामोश रात में

अब वो दिन में भी जाग रहे हैं

रात रौशन जो हो रही है

उन्हें एतराज़ है इस बात पर

रात रौशन क्यों है

वो बहुत गुस्से में है

वो बहुत गुस्से में है

वो साबित करना चाहते है

वो भी प्रहरी है

सूखी हुई खेती के

और उसको काटने नहीं देगे

और अपने मुलायम आसान से उतर आये है

वो अनशन भी कर सकते है

उन्हें डायबटीज़ है मानसिक

मीठा नहीं खा… Continue

Added by मनोज अहसास on October 21, 2015 at 8:21pm — 10 Comments

तरही ग़ज़ल_मनोज अहसास

1222 1222 1222 1222





मेरी आँखों से ऎसे दर्द का रिश्ता निकल आया

जिसे रक्खा निग़ाहों में वही कतरा निकल आया



वो जिसको सारी दुनिया की खुदा ने बख्श दी दौलत

उसी के घर मेरा खोया हुआ कांसा निकल आया



न मेरे हिस्से में तेरी झलक थी इक नज़र को भी

बहुत परदे हटाये फिर भी एक पर्दा निकल आया



मैं दसरथ मांझी का किस्सा भी इस मिसरे में कहता हूँ

किसी की जिद के आगे नूर का रस्ता निकल आया



जो उसने कह दिया गर वाह बिना समझे ग़ज़ल मेरी

मेरे सिर… Continue

Added by मनोज अहसास on October 11, 2015 at 2:30pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service