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मनोज अहसास's Blog – October 2015 Archive (3)

ग़ज़ल इस्लाह के लिए (मनोज कुमार अहसास)

2122 2122 2122 212





कल्पना का पथ टटोलें कुछ समय की आह सुन

इस तरह निभ जाये शायद अपनी चाहत अपनी धुन



उनकी यादों की कोई सीमा कोई मंज़िल भी है

मुड़ हकीकी से मजाज़ी या जगत की पीर बुन



बेगुनाही का मज़ा इस बात से दुगना हुआ

मेरे कातिल ने कहा है खुद सजा की राह चुन



एक मिसरा उनपे भी हो जिनसे होती है ग़ज़ल

फाइलातुन, फाइलातुन ,फाइलातुन, फाइलुन



प्रेम की इस व्यंजना में इक अमिट अनुराग है

वो न मेरा नाम लेती है कहती है बस मेरे…

Continue

Added by मनोज अहसास on October 27, 2015 at 2:00pm — 18 Comments

वो जाग रहे हैं

वो जाग रहे हैं

दिन है फिर भी जाग रहे हैं

अक्सर वो रात में जागते है

अँधेरी और खामोश रात में

अब वो दिन में भी जाग रहे हैं

रात रौशन जो हो रही है

उन्हें एतराज़ है इस बात पर

रात रौशन क्यों है

वो बहुत गुस्से में है

वो बहुत गुस्से में है

वो साबित करना चाहते है

वो भी प्रहरी है

सूखी हुई खेती के

और उसको काटने नहीं देगे

और अपने मुलायम आसान से उतर आये है

वो अनशन भी कर सकते है

उन्हें डायबटीज़ है मानसिक

मीठा नहीं खा… Continue

Added by मनोज अहसास on October 21, 2015 at 8:21pm — 10 Comments

तरही ग़ज़ल_मनोज अहसास

1222 1222 1222 1222





मेरी आँखों से ऎसे दर्द का रिश्ता निकल आया

जिसे रक्खा निग़ाहों में वही कतरा निकल आया



वो जिसको सारी दुनिया की खुदा ने बख्श दी दौलत

उसी के घर मेरा खोया हुआ कांसा निकल आया



न मेरे हिस्से में तेरी झलक थी इक नज़र को भी

बहुत परदे हटाये फिर भी एक पर्दा निकल आया



मैं दसरथ मांझी का किस्सा भी इस मिसरे में कहता हूँ

किसी की जिद के आगे नूर का रस्ता निकल आया



जो उसने कह दिया गर वाह बिना समझे ग़ज़ल मेरी

मेरे सिर… Continue

Added by मनोज अहसास on October 11, 2015 at 2:30pm — 6 Comments

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