Added by Er. Ambarish Srivastava on October 25, 2011 at 12:30pm — 7 Comments
मैं जुबां पर सिर्फ मैं, यह बात है अभिमान की,
छोड़ मैं को अब बनें हम बात ये ही ज्ञान की. |१|
जो किसी को भी न भातीं छोड़ दो वो आदतें,
दोस्तों अब फिक्र हो इस देश के सम्मान की. |२|
माँ से हमको है मिलाया बाप का साया दिया,
हम चुका सकते नहीं कीमत तेरे एहसान की. |३|
जान देकर जो गये अपनी शहीदाने…
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 19, 2011 at 12:30am — 8 Comments
अदब के साथ जो कहता कहन है
वो अपने आप में एक अंजुमन है
हमें धोखे दिये जिसने हमेशा
उसी के प्यार में पागल ये मन है
हुई है दिल्लगी बेशक हमीं से
कभी रोशन था उजड़ा जो चमन है
अँधेरे के लिए शमआ जलाये
जिया की बज्म में गंगोजमन है
नज़र दुश्मन की ठहरेगी कहाँ अब
बँधा सर पे हमेशा जो कफ़न है
खिले हैं फूल मिट्टी है महकती
यहाँ पर यार जो मेरा दफ़न है
कहाँ परहेज मीठे से हमें…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on October 2, 2011 at 12:30am — 19 Comments
हरिगीतिका
(1)
मधु छंद सुनकर छंद गुनकर, ही हमें कुछ बोध है,
सब वर्ण-मात्रा गेयता हित, ही बने यह शोध है,
अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है,
रसधार छंदों की बहा दें, यह मेरा अनुरोध है ||
(2)
यह आधुनिक परिवेश इसमें, हम सभी पर भार है,
यह भार भी भारी नहीं जब, संस्कृति आधार है,
सुरभित सुमन सब है खिले अब, आपसे मनुहार है,
निज नेह के दीपक जलायें, ज्योंति का…
Added by Er. Ambarish Srivastava on October 1, 2011 at 2:31am — 15 Comments
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