मेरा सूरज है तू...!
मंदिरों में दिये सजाए जाते
नित्य सुबह और शाम!
जला दी जाती हैं बातियॉं
ज्ञान की राह में,
रोशनी की आस में,
बेटों की कतार में,
चिरागों की मृगतृष्णा,
ताख को काला कर देती है।
बातियां,
सारी उम्र जल कर
रोशनी देती,
खुशियां बांटती।
दीपक,
पल-पल तेल सोखता
चतुर महाजन सा
ब्याज पहले और मूलधन बाद में
स्वयं के होने का एहसास कराता।
बातियां भ्रूण सी,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 12, 2014 at 5:30pm — 2 Comments
चित्त की वृत्ति
चंचल है कदाचित,
यह मचलती
सूर्य के प्रकाश जैसी।
तन विषय विष से भरे
घट को पिए जो
खार के सागर
अहं के ज्वार उगले।
रोक दो वृत्ति
तमस को भेद कर -चित्त में
योग - अनुशासन
तुला पर तोलता है।
वृत्ति की आवृत्ति
निश्छल शून्य जब भी
दिव्य अद्भुत योग से
साक्षात मुक्ति।
आत्मा - परमात्मा
चित्त के उपज जो
एक खोली में रहें जीव जैसे-
काष्ठ में अग्नि,
जल में वाष्प…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 8, 2014 at 9:00pm — 14 Comments
"वैभव छन्द" की रचना- एक भगण, एक सगण तथा लघु गुरू अर्थात्- 211, 112, 12 के योग से की जाती है।
श्वेत बसन शारदे!
नित्य नमन राम को।
प्रेम रमन श्याम को।।
सूर्य प्रखर तेज है।
कंट असर सेज है।।1
रात दिन विचारता।
आर्त जन पुकारता।।
कष्ट तम हरो प्रभू।
ज्योति बल तुम्ही विभू।।2
विश्व सकल आप से।
सृ-िष्ट विकल ताप से।।
पाप-पतित तारना।
सत्य शिवम कामना।।3
जीव जड़…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 6, 2014 at 11:35am — 6 Comments
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