काश ! ऐसा हो जाये कि,
ज़िंदगी एक पूरा नशा बन जाये,
नशे में सब कुछ माफ हो, और,
ज़िंदगी जीने का मज़ा आ जाये ।
जी लूँ कुछ,
इस तरह कि,
अगले जनम की भी,
चाह न रह जाए।
ऐ दुनियावालों !
क्यों है ये बेइन्तहा मुश्किल?
कि कह सकें-कर सकें वो,
जो दिल करना चाहता हो।
कभी हमें भी था,
भरोसा अपने सपनों पर,
अब अहसास हो गया है कि,
सपने दूसरो के ही र॔ग लाते हैं।
न सोचूँ, न मैं चाहूँ,
न ही…
Added by Usha on October 29, 2019 at 12:30pm — 6 Comments
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