२१२२ १२१२ २२
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ैलुन
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रंग ख़ुशियों के कल बदलते ही,
ग़म ने थामा मुझे फिसलते ही,
मैं जो सूरज के ख़्वाब लिखती थी,
ढल गयी हूँ मैं शाम ढलते ही,
राह सच की बहुत ही मुश्किल है,
पाँव थकने लगे हैं चलते ही
वो मुहब्बत पे ख़ाक डाल गया
बुझ गया इक चराग़ जलते ही,
ख़्वाब नाज़ुक हैं काँच के जैसे,
टूट जाते हैं आँख मलते ही…
ContinueAdded by Anita Maurya on October 25, 2017 at 7:27pm — 10 Comments
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