ये न सोचों कि खुशियों में बसर होती है,
कई महलों में भी फांके की सहर होती है !
उसकी आँखों को छलकते हुए आँसूं ही मिले,
वो तो औरत है, कहाँ उसकी कदर होती है
कहीं मासूम को खाने को निवाला न मिला,
कहीं पकवानों से कुत्तों की गुजर होती है,
वो तो मजलूम था, तारीख पे तारीख मिली,
जहाँ दौलत हो इनायत भी उधर होती है,
दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,
जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है !!अनुश्री!!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अनिता जी
आदरणीया , अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ ॥ बह्र लिख देना अच्छा होता है , सीखने वालों के लिये !!
ये न सोचों कि खुशियों में बसर होती है,
कई महलों में भी फांके की सहर होती है !----------बहुत खूब
बधाई आदरणीया
दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,
जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है...............वाह! बहुत सुंदर
हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया अनीता जी
शिज्जु शकूर ji Shailendra Awasthi ji vandanaji Mukesh Verma "Chiragh" ji Dr Ashutosh Mishra ji aabhar aap sabka.. वीनस केसरी ji.. kripya margdarshan karen.. abhi taknik ki samajh nahi hai.. bs prayasrat hu..
सुन्दर ग़ज़ल है
कुछ मिसरे लय से भटक गए हैं ...
उसकी आँखों को छलकते हुए आँसूं ही मिले,
वो तो औरत है, कहाँ उसकी कदर होती है.....सही बात
कहीं मासूम को खाने को निवाला न मिला,
कहीं पकवानों से कुत्तों की गुजर होती है,..एक बिडम्बना है
दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,
जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है.....मगर गरीब सपने भी नहीं देख सकता है हकीकत यही है .. इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई आदर्नीएया ..सादर
आदरणीया अनीता जी
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने. कमाल के एहसासों को जमा किया है आपने.
बहुत मज़ा आया पढ़कर. बहुत बहुत मुबारकबाद इस खूबसूरत पेशकश पर
सारे आसार.. एक से बढ़कर एक
तकनीक की बात नहीं करूँगा मैं.. लिखते रहिए..
आदरणीया अनुश्री जी बहुत सुन्दर भाव संयोजन किया है आपने
बहुत खूब अनीता जी.....
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