देखी एक दिन फूलों की लडाई
रहते थे अब तक जो बन भाई - भाई |
काँटों से निकल कर गुलाब बोला
सूरज ने जब रात का पट खोला
मेरी खुशबू से खिलता है बाग़
समाज जाते हैं लोग खिल गया गुलाब
सुन रहे थे यह और भी फूल कई
नहीं हैं हम भी मिटटी या धूल कोई
बाग में हो रही थी सबकी बहस
हो रहा था बाग तहस नहस
कीचड़ से कमल खिल उठा
देख सबको वह बोल उठा
देखो खुद को , सोचो तो…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 30, 2017 at 10:18pm — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 22, 2017 at 6:43pm — 9 Comments
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