आज लहरों ने की बातें मुझसे
बोलीं
तुम सोचती हो तुम हो बहादुर
समय से तुम लडती हो
मूर्ख हो तुम
जो यह सोचकर दम भरती हो|
और वह इठला कर चली गयी
दूर
वहीं जहाँ से वह आयीं थी
किनारे तक
और वहाँ पड़े चट्टानों से
टकरा-टकरा कर रही थी
बातें उनसे,
कह रहे थे चट्टान उनसे
रुक जाओ
करीब आप मेरे ऊपर से
न यूँ बह जाओ
रुको कुछ घड़ी
की हम तपते हैं
और…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 26, 2018 at 12:00am — 9 Comments
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