1212 1122 1212 22
जो हिकमतों से मुक़द्दर तराश लेते हैं
पड़े जो वक़्त वो मंज़र तराश लेते हैं
वो मुझसे पूछने आये हैं मानी हँसने का
सुकूँ के पल से जो महशर तराश लेते हैं
उन्हे यक़ीन है वो आँधियाँ बना लेंगे
हमें यक़ीन है हम घर तराश लेते हैं
अगर मिले उन्हे रस्ते में भी पड़ा पत्थर
तो उसके वास्ते वो सर तराश लेते हैं
उन्हे है जीत का ऐसा नशा कि लड़ने को
हमेशा ख़ुद से वो कमतर तराश लेते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 26, 2016 at 9:21am — 4 Comments
2122 1122 1122 22
बात सरहद पे अगर अब भी पुरानी होगी
तब दिलों मे हमें दीवार उठानी होगी
हर कहानी में हक़ीकत भी ज़रा होती है
ये हक़ीकत भी किसी रोज़ कहानी होगी
हाथ जिनके भी बग़ावत पे उतर आये हों
पैर में उनके भला कैसे रवानी होगी
सभ्य लोगों में असभ्यों की तरह बात तो कर
ये नई नस्ल है, तेरी भी दिवानी होगी
अपने अजदाद कभी राम-किसन-गौतम थे
देखना घर मे बची कुछ तो निशानी होगी
रंग…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 20, 2016 at 8:10am — 19 Comments
ग़ालिब साहब की ज़मीन पर एक प्रयास
तब अलग थी, अब जवानी और है
2122 2122 212 --
शक्ल में जिनकी कहानी और है
क्या उन्होनें मन मे ठानी और है
लफ़्ज़ तो वो ही पुराना है मगर
आज फिर क्यों निकला मअनी और है
हाथ में पत्थर है, लब खंज़र हुये
तब अलग थी, अब जवानी और है
है समंदर की सतह पर यूँ सुकूत
पर दबी अब सरगिरानी और है
साजिशें सारी पस ए परदा हुईं
पर अयाँ जो है ज़बानी,.. और है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 2, 2016 at 8:00am — 31 Comments
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