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गजल बेबहर है, नदी बिन लहर है
कहो,क्या करूँ जब बिखरता जहर है?1
कहूँ क्या भला मैं? सुनेगा न कोई,
हुआ हादसा,मौन सारा शहर है।2
बचेगी नहीं लाज समझा करो तुम
बहकती यहां की हवा हर पहर है।3
गिनूँ क्या सितम गैर से जो मिले
मिले दर्द घर में, बड़ा ही कहर है।4
बुझाते रहे जो चिरागों को' अबतक
बताते कि होने को' अब तो सहर है।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 21, 2019 at 11:00am — 2 Comments
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चलो भी जला के दिखा दें दिये
चले जा रहे वे अँधेरा किये।1
बहुत दिन गये चोट खाते हुए
रहेंगे कहाँ तक कहो मुँह सिये।2
किये जा रहे मौज मस्ती बड़ी
भुलाते हमें,जो हमारे हिये।3
चले पाँव नंगे, मिलीं कुर्सियाँ
लगा आजकल हैं नशा वे पिये।4
उड़ीं जो पतंगें, हुईं बेवफा
पिटे लोग लगता है' अपने किये।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 2, 2019 at 7:28am — 3 Comments
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