बहुत से फंदे है
उनके पास
छोटे-बड़े नागपाश
इन फंदों में
नहीं फंसती उनकी गर्दन
जो इसे हाथ में लेकर
मौज में घुमाते है
लहराते है
किसी गरीब को देखकर
फुंकारता है यह
काढता है फन
किसी प्रतिशोध भरे सर्प सा
लिपटता है यह फंदा
अक्सर किसी निरीह के
गले में कसता है
किसी विषधर के मानिंद
और चटका देता है
गले की हड्डियाँ
किसी जल्लाद की भांति …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 25, 2015 at 12:26pm — 14 Comments
आज भी कभी
जब उधर से गुजरता हूँ
उतर जाता हूँ
उस खास स्टेशन पर
टहलता हूँ देर तक
लम्बे प्लेटफार्म पर
बेसुध आत्मलीन
फिर चढ़ जाता हूँ रेलवे पुल पर
तलाशता हूँ वह् रेलिंग
वह ख़ास जगह
टटोलकर देखता हूँ
शायद वही जगह है
स्तब्ध हो जाता हूँ
लगता है कोई
सोंधी महक
सहसा उठी और
सिर से गुजर गई
नीचे आता हूँ
फिर पुल के नीचे
पुल के आधार…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 18, 2015 at 7:56pm — 5 Comments
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